चैतन्य भारत न्यूज
नई दिल्ली. भारत के सबसे पुराने और लंबे समय तक चलने वाले अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला हिंदू पक्ष में सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन रामलला विराजमान को देने का फैसला किया है। साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड को अलग से 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने गोपाल सिंह विशारद को भी रामलला की पूजा करने का अधिकार दिया है। हालांकि, गोपाल सिंह विशारद की मौत हुए 33 साल हो चुके हैं।
कौन थे गोपाल सिंह विशारद?
बता दें हिंदू महासभा के गोपाल सिंह विशारद वहीं व्यक्ति हैं जिन्होंने 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के बाद हिंदू महासभा की तरफ से रामलला दर्शन और पूजन के व्यक्तिगत अधिकार के लिए 1950 में फैजाबाद न्यायालय में मुकदमा दायर किया था। 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने सिविल जज की अदालत में सरकार, जहूर अहमद और अन्य मुसलमानों के खिलाफ मुकदमा दायर कर कहा था कि जन्मभूम पर स्थापित भगवान राम और अन्य मूर्तियों को हटाया न जाए और उन्हें दर्शन और पूजा के लिए जाने से रोका न जाए। उसी दिन सिविल जज ने यह स्थागनादेश जारी कर दिया, जिसके बाद मामूली संशोधनों के साथ जिला जज और हाईकोर्ट ने भी अनुमोदित कर दिया।
गोपाल के बेटे कर सकते हैं पूजा
जानकारी के मुताबिक, अयोध्या विवाद पर शुरुआती चार सिविल मुकदमों में से एक गोपाल सिंह ने ही दायर किया था। गोपाल सिंह अयोध्या के स्वर्गद्वार मोहल्ला के रहने वाले थे। उन्हें अयोध्या के पहले कारसेवक के रूप में जाना जाता है। शुरुआत से ही वह हिंदू महासभा से जुड़े हुए थे। साल 1986 में गोपाल सिंह विशारद का देहांत हो गया था। ऐसे में पूजा का अधिकार उनके उत्ताराधिकारी को मिलेगा। बता दें गोपाल सिंह की मौत के बाद उनके बेटे राजेन्द्र सिंह केस की पैरवी कर रहे थे।