चैतन्य भारत न्यूज
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष नवमी को आंवला नवमी पर्व मनाया जाता है। इस नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस साल की अक्षय नवमी 23 नवंबर को है। आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष के पूजन के साथ ही पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए पूजन का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व और पूजा विधि।
अक्षय नवमी का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा होती है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल नवमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा की तिथि तक आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की भी विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन स्नान, पूजा, तर्पण तथा अन्नादि के दान से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। अक्षय नवमी को धात्री नवमी और कूष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है।
अक्षय नवमी पूजा-विधि
- सुबह स्नान करके पूजा करने का संकल्प लें।
- आंवले के पेड़ के निकट पूर्व मुख होकर उसमे जल डालें।
- आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भगवान शिव, विष्णु और मां लक्ष्मी का पूजा करें।
- प्रार्थना करें कि आंवले की पूजा से आपको सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का वरदान मिले।
- वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें और कपूर से आरती करें।
- गरीबों और ब्राह्मणों को आंवला दान करें। इससे आपकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
- आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन बनाएं और ब्राह्म्णों को खिलाएं। साथ ही स्वयं भी भोजन करें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है।