चैतन्य भारत न्यूज
वाशिंगटन. मेडिकल साइंस के क्षेत्र में डॉक्टरों ने एक और बड़ी सफलता हासिल की है। अब डॉक्टर ने एक ऐसी तकनीक बनाई है जिससे पेरिटोनियल (पेट का एक बड़ा भाग) डायलिसिस की प्रक्रिया सरल हो जाएगी। इस बार एक ऐसी पहनने योग्य कृत्रिम किडनी बनाई गई है, जो खुद ही काम करती है। यह कृत्रिम किडनी पेरिटोनियल डायलिसिस के दौरान मरीज के खून से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में बेहद प्रभावकारी साबित हुई।
मरीज खुद कर सकेगा अपना डायलिसिस
अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी के वाल्टर ई. वाशिंगटन कंवेंशन सेंटर में एएसएन किडनी वीक आयोजित हुआ जिसमें इस शोध अध्ययन को प्रस्तुत किया गया। शोधकर्ता एडब्ल्यूएके नामक पहनने योग्य इस कृत्रिम किडनी की पेरिटोनियल डायलिसिस में उपयोगिता की संभावनाओं को लेकर परीक्षण में जुटे हैं। यदि अंतिम रूप में यह तकनीक सफल हो जाती है तो फिर पेरिटोनियल डायलिसिस में काफी बदलाव आएगा। जानकारी के मुताबिक, इसके जरिए न सिर्फ डायलिसिस में लगने वाला समय बहुत कम हो जाएगा, साथ ही डायलिसिस से पहले होने वाली लंबी थेरेपी और बड़ी मशीनों को एक साथ जोड़ने की मुसीबत से भी छुटकारा मिल जाएगा। खास बात यह है कि इसके जरिए मरीज खुद ही अपना डायलिसिस कर सकेगा।
15 मरीजों पर कई बार किया गया प्रयोग
एडब्ल्यूएके (कृत्रिम किडनी) में एक सॉर्बेंट-आधारित पुनर्योजी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। बता दें सॉर्बेंट एक तरह का अवशोषित (Absorbed) करने वाली सामग्र्री है। इस तकनीक के जरिए इस्तेमाल किए गए डायलिसिस द्रव (फ्लूड) से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर उसे पुनर्जीवित और पुनर्गठित कर उसे फिर से ताजे द्रव में बदला जा सकता है। इस तकनीक का प्रयोग 15 मरीजों पर कई बार किया गया है। इलाज के महीनेभर बाद तक भी मरीजों पर किसी तरह का गंभीर प्रतिकूल प्रभाव नहीं देखने को मिला। साथ ही उनके खून से भी अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकल गए।
इलाज हो जाएगा आसान
सिंगापुर जनरल हॉस्पिटल के प्रबंध निदेशक और प्रधान जांचकर्ता मरजोरी फू वाइ विन ने बताया कि, एडब्ल्यूएके पेरिटोनियल डायलिसिस में इस्तेमाल की गई पुनर्योजी सॉर्बेंट तकनीक नई है। यदि यह तकनीक पूरी तरह से सफल हो जाती है तो फिर पिछले 40 सालों से चले आ रहे पेरिटोनियल डायलिसिस के तरीके में व्यापक बदलाव आएगा। इसके जरिए इलाज बहुत आसान भी हो जाएगा। साथ ही फ्लूड के दोबारा इस्तेमाल किए जाने से संसाधन भी बचेंगे।
किडनी के काम बंद करने पर पड़ती है डायलिसिस की जरूरत
आपको बता दें किडनी का काम शरीर से अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को बाहर निकालकर खून को साफ करना होता है। जब व्यक्ति की किडनी काम करना बंद कर देती है तो उसे डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। यानी कि कृत्रिम तरीके से रक्त को साफ किया जाता है। पेरिटोनियल डायलिसिस प्रक्रिया में शरीर से अपशिष्ट और अतिरिक्त पदार्थों को हटाने के लिए एक प्लास्टिक ट्यूब के माध्यम से रोगी के पेट के गुहा में तरल पदार्थ रखा जाता है। फिल्टर के तौर पर काम करने के लिए यह मरीज के शरीर के ऊतकों (Tissues) का उपयोग करता है।