चैतन्य भारत न्यूज
मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है। हिंदू धर्म में अन्नपूर्णा जयंती का काफी महत्व है। इस साल अन्नपूर्णा जयंती 12 दिसंबर दिन गुरुवार को है। माना जाता है कि, मां अन्नपूर्णा की आराधना और व्रत करने से घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। आइए जानते हैं अन्नपूर्णा जयंती का महत्व और पूजन-विधि।
अन्नपूर्णा जयंती का महत्व
यह त्योहार मां पार्वती के अन्नपूर्णा स्वरूप को समर्पित है। इस दिन मां पार्वती ने अन्नपूर्णा रूप धारण किया था। अन्नपूर्णा जयंती को मां अन्नपूर्णा की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है, जिससे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। व्रत रखने से भक्तों के घर अन्न, खाने-पीने की वस्तुओं और धन्य-धान से भर जाता है।
अन्नपूर्णा जयंती की शुरुआत
शास्त्रों के मुताबिक, एक बार किसी कारण से पृथ्वी बंजर हो गई। फसलें, फलों आदि की पैदावार नहीं हुई। पृथ्वी पर जीवों के सामने प्राणों का संकट आ गया। तब भगवान शिव ने पृथ्वीवासियों के कल्याण के लिए भिक्षुक का स्वरूप धारण किया और माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का अवतार लिया। इसके बाद भगवान शिव ने मां अन्नपूर्णा से भिक्षा स्वरूप अन्न मांगे। उस अन्न को लेकर पृथ्वी लोक पर गए और उसे सभी प्राणियों में बांट दिए। इससे धरती एक बार फिर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गई। इसके बाद से ही मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाने लगी।
अन्नपूर्णा जयंती की पूजन-विधि
- इस दिन घर में रसौई घर को धोकर स्वच्छ किया जाता हैं। घर के चूल्हे को धोकर उसकी पूजा की जाती हैं।
- घर के रसौई घर को गुलाब जल, गंगा जल से शुद्ध किया जाता हैं।
- इस दिन माता पार्वती और शिव जी की पूजा की जाती हैं।
- इस दिन अन्न दान का विशेष महत्व है।
- यह त्योहार अन्न के आदर की शिक्षा देता है।