चैतन्य भारत न्यूज
हिंदू धर्म में अपरा एकादशी का बहुत महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी पर व्रत रखने से भक्तों को अत्यंत पुण्य की प्राप्ति होती है और व्रतियों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस बार अपरा एकादशी 18 मई को है। इस एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विष्णु भगवान की पूजा अर्चना की जाती है। पुराणों के मुताबिक, अचला या अपरा एकादशी का व्रत करने से ब्रह्म हत्या, परनिंदा, भूत योनि जैसे पापों से छुटकारा मिल जाता है।
ये है शुभ मुहर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 17 मई 2020, दोपहर 12 बजकर 42 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 18 मई 2020, दोपहर 03 बजकर 8 मिनट तक
पारण का समय: 19 मई 2020, सुबह 5 बजकर 28 मिनट से सुबह 8 बजकर 12 मिनट तक
व्रत विधि
- एकादशी की सुबह व्रती (व्रत करने वाला) पवित्र जल में स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें।
- अपने परिवार सहित पूजा घर में या मंदिर में भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें।
- इसके बाद गंगाजल पीकर आत्म शुद्धि करें। रक्षा सूत्र बांधे।
- शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
- शंख और घंटी की पूजा अवश्य करें, क्योंकि यह भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है।
- व्रत करने का संकल्प लें।
- इसके बाद विधिपूर्वक भगवान की पूजा करें और दिन भर उपवास करें।
- रात को जागरण करें।
- व्रत के दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें और उसके बाद स्वयं भोजन करें।
अपरा एकादशी की कथा
प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा।
ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।