चैतन्य भारत न्यूज
देश के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक भगत सिंह का जन्म साल 1907 में आज ही के दिन लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। शुरू से ही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की बुलंद आवाज का माहौल था, ऐसे में भगत सिंह भी देश को आजादी दिलाने की राह पर चल पड़े। इस कारण वह कई सालों तक जेल में भी रहे और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते रहे। आखिरकार भगत सिंह 23 वर्ष की उम्र में देश के नाम अपनी जान कुर्बान कर गए।
भगत सिंह ने ऐसे कई काम किए हैं जो इतिहास बन गए। 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें उनका साथ चन्द्रशेखर आजाद ने भी दिया था। फिर भगत सिंह ने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे।
भगत सिंह और उनके अन्य साथी जेल में जब उम्र कैद की सजा काट रहे थे तो इस दौरान वे लेख लिखकर ही अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहते थे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। पहले वे दिल्ली जेल में थे, लेकिन फिर उन्हें लाहौर शिफ्ट कर दिया गया उसके बाद जब जेलर से किसी बात पर नहीं बनी तो भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया। भगत सिंह ने लाहौर जेल में भी कई खत और लेख लिखे थे।
भगत सिंह ने 24 फरवरी 1930 को अपने दोस्त जयदेव के लिए एक खत लिखा था। इस खत के जरिए भगत सिंह ने कुछ ऐसी चीज मंगाई थी, जिसकी उन दिनों जेल में बेहद जरूरत थी। भगत सिंह ने लिखा था कि-
मुझे उम्मीद है कि तुमने 16 दिन के बाद हमारी भूख हड़ताल छोड़ने की बात सुन ली होगी और तुम अंदाजा लगा सकते हो कि इस समय तुम्हारी मदद की कितनी जरूरत है। हमें कल कुछ संतरे मिले लेकिन कोई मुलाकात नहीं हुई। हमारा मुकदमा 2 सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया है। इसलिए एक टीन घी और एक क्रेवन-ए सिगरेट का टिन भिजवाने की तुरंत कृपा करो। सिगरेट के बिना दल की हालत खराब है, अब हमारी जरूरतों की अनिवार्यता समझ सकते हो।
अग्रिम आभार सहित
सहित तुम्हारा
भगत सिंह
भगत सिंह ने अपने लेख में यह भी लिखा था कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। भगत सिंह व उनके साथियों ने जेल में करीब 64 दिनों तक भूख हड़ताल की थी। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो इस भूख हड़ताल में अपने प्राण भी त्याग दिए थे। फिर 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई थी।