चैतन्य भारत न्यूज
भारतीय वसुंधरा को गौरवान्वित करने वाली झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई की आज 192वीं जयंती है। 19 नवंबर, 1828 में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मीं रानी लक्ष्मीबाई का नाम मणिकर्णिका रखा गया था। उन्हें बचपन में प्यार से मनु या छबीली के नाम से बुलाया जाता था। साल 1842 में उनका विवाह झांसी के मराठा शासक राजा गंगाधर राव के साथ हुआ और वह झांसी की रानी बनीं। जन्मदिन के मौके पर आइए जानते हैं रानी लक्ष्मीबाई के जीवन के बारे में…
मणिकर्णिका का ब्याह झांसी के महाराजा गंगाधर राव नेवलकर से हुआ और देवी लक्ष्मी पर उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा। बेटे को जन्म दिया, लेकिन 4 माह का होते ही उसका निधन हो गया। फिर राजा गंगाधर ने अपने चचेरे भाई का बच्चा गोद लिया और उसे दामोदार राव नाम दिया गया। झांसी को शोक में डूबा देखकर अंग्रेजों ने कुटिल चाल चली और झांसी पर चढ़ाई कर दी। रानी ने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया और उन्होंने वर्ष 1854 में अंग्रेजों को सा़फ कह दिया ‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’।
रानी लक्ष्मी बाई ने साल 1857 में विद्रोह कर दिया और तांत्या टोपे की सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश सेना से मुकाबला किया। जिसमें कैप्टन डनलप, लेफ्टिनेण्ट टेलर और कैप्टन गॉर्डन मारे गए। कैप्टन स्कीन ने बचे हुए अंग्रेज सैनिकों सहित बागियों के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया। इसी दिन झोकनबाग में बागियों ने 61 अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा।
युद्ध जब चरम पर पहुंचा, तब रानी दत्तक पुत्र को पीठ पर बांधे और घोड़े की लगाम मुंह में दबाए किले के ऊपर से कूद कर दुश्मनों से निर्भीकता पूर्वक युद्ध करने लगीं। रानी लक्ष्मीबाई, अंग्रेज़ों से भिड़ना नहीं चाहती थीं लेकिन सर ह्यूज रोज की अगुवाई में जब अंग्रेज सैनिकों ने हमला बोला, तो कोई और विकल्प नहीं बचा। रानी को अपने बेटे के साथ रात के अंधेरे में भागना पड़ा। लेकिन दुर्भाग्यवश रानी का घोड़ा इस नाले को पार नहीं कर सका। उसी समय पीछे से एक अंग्रे़ज सैनिक ने रानी पर तलवार से हमला कर दिया, जिससे उन्हें काफी चोट आई और ग्वालियर के पास ब्रिटिश सेना से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई 18 जून 1858 में मात्र 29 वर्ष की उम्र में शहीद हो गईं।