चैतन्य भारत न्यूज
श्रीहरिकोटा. अंतरिक्ष की दुनिया में हमारे देश ने एक और उपलब्धि हासिल करने की ओर कदम बढ़ा लिए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के ‘चंद्रयान-2’ मिशन की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। उलटी गिनती रविवार सुबह करीब 6 बजकर 51 मिनट पर शुरू हुई जो कि अगले 20 घंटे तक चलेगी। इसके बाद इसरो का सबसे भारी रॉकेट जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल-मार्क-3 (जीएसएलवी-एमके3) चांद की ओर रवाना होगा। बता दें इसी रॉकेट के सबसे ऊपरी हिस्से में चंद्रयान-2 रखा गया है।
🇮🇳#ISROMissions🇮🇳#Chandrayaan2#GSLVMkIII
Take a glimpse of Chandrayaan-2 Orbiter in clean room. It carries 8 scientific payloads for mapping lunar surface and to study moon’s atmosphere pic.twitter.com/IRYiTqRqcZ— ISRO (@isro) July 14, 2019
15 जुलाई को देर रात तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर चंद्रयान-2 श्रीहरिकोटा के सतीश धवन सेंटर से लॉन्च होगा। 6 से 7 सितंबर को यह जब चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा तो ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन जाएगा। बता दें भारत से पहले अमेरिका, चीन और सोवियत रूस भी चांद पर पहुंच चुके हैं। लेकिन उनके यान की लैंडिंग दक्षिणी ध्रुव पर नहीं हुई है। जानकारी के मुताबिक चंद्रयान-2 की लागत 603 करोड़ रुपए और अंतरिक्ष यान की लागत 375 करोड़ रुपए हैं।
Here’s a shot of the Pragyan Rover on the ramp of the Vikram Lander in clean room, prior to its integration with the launch vehicle. #Chandrayaan2 #GSLVMkIII #ISRO pic.twitter.com/sMZ8enBSld
— ISRO (@isro) July 14, 2019
बता दें इस मिशन का मुख्य उद्देश्य चांद पर पानी का पता लगाना और वहां भूकंप आता है या नहीं ये पता लगाना है। चंद्रयान-2 में 14 पेलोड्स हैं। इनमें से 25 ग्राम का एक उपकरण नासा का भी है, जो पृथ्वी से चंद्रमा तक की दूरी को नापेगा। इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने बताया कि, ऑर्बिटर पहले 16 दिनों तक पृथ्वी के 5 चक्कर लगाएगा। फिर 5 दिन चंद्रमा की ओर चलेगा। चंद्रमा के 4 चक्कर लगाकर 100 किमी की दूरी पर चंद्रमा की वृत्तीय कक्षा में पहुंचेगा और अगले 27 दिन वहीं चक्कर लगाएगा। इसके बाद लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और फिर अगले 4 दिनों तक चंद्रमा के चक्कर काटते हुए दूरी कम करता जाएगा। 6 या 7 सितंबर को जब यह चंद्रमा से 30 किमी की दूर पर पहुंचेगा तो 15 मिनट में चंद्रमा की सतह पर लैंड करेगा। यह समय सबसे क्रिटिकल होगा।
ऑर्बिटर
ऑर्बिटर चांद के चक्कर लगाता रहेगा और साथ ही वह लैंडर और रोवर पर नजर भी रखता रहेगा। इसी के साथ रोवर से मिली जानकारी इसरो तक भेजेगा।
लैंडर (विक्रम)
बता दें लैंडर का नाम इसरो के संस्थापक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। यह ऑर्बिटर से अलग होकर चांद पर उतरेगा। इसके भीतर रोवर लगा होगा। चांद पर लैंडर 15 दिनों तक प्रयोग करता रहेगा। विक्रम 650 वाट बिजली पैदा करने की क्षमता वाला है। यह ऑर्बिटर और रोवर से सीधा संपर्क में रहेगा।
रोवर (प्रज्ञान)
लैंडर के भीतर मौजूद रोवर के 6 पहिए अशोक चक्र की तर्ज पर बनाए गए हैं। यह 1 सेमी/सेकंड की गति से चलेगा। इसी के साथ यह 15 दिन में 500 मीटर की दूर तय करेगा। रोवर चांद की सतह, वहां के वातावरण और मिट्टी की जांच करेगा। जैसे ही रोवर चांद पर उतरेगा उसके 15 मिनट बाद चांद की तस्वीरें भेजना शुरू कर देगा।