चैतन्य भारत न्यूज
नई दिल्ली. 16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड के आरोपितों में से चार गुनाहगारों की मौत की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। हर देशवासी को उस घड़ी का इंतजार है जब चारों दरिंदों को फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा। चार में से तीन दोषी मुकेश, विनय और अक्षय पिछले सात सालों से तिहाड़ में बंद हैं। पवन को भी अब मंडोली जेल से तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया गया है। अब उनकी फांसी की तैयारी चल रही है। क्या आपको पता है कि जब किसी को फांसी दी जाती है, तो जेल में वक्त थम-सा जाता है। आइए जानते हैं फांसी के वक्त जेल में कैसा माहौल रहता है।
आसान नहीं फांसी की प्रक्रिया
फांसी की प्रक्रिया आसान नहीं है। इस दौरान कई अहम बातों का ख्याल रखा जाता है। जैसे कि- कैदी को अलग रखा जाना, उसके स्वास्थ का अच्छे से ख्याल रखना, 24 घंटे उसकी निगरानी करना ताकि वो खुद को कोई नुकसान ना पहुंचा सके।
फांसी के दौरान जेल में रुक जाता है वक्त
किसी भी दोषी को फांसी देने की प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है। इसके लिए कई नियम-कानून का भी पालन सख्ती से किया जाता है। जब भी किसी दोषी कैदी को फांसी दी जाती है तो वह कार्रवाई तब तक अंजाम तक नहीं पहुंचती, जब तक लाश फंदे से नीचे नहीं उतार ली जाए। फांसी देते समय जेल के सभी काम रोक दिए जाते हैं। हर कैदी अपने सेल और अपने बैरक में होता है। यहां तक कि जेल में कोई मूवमेंट नहीं होता। यानी फांसी देते वक्त जेल में हर तरफ सन्नाटा-सा पसर जाता है। यह सब जेल मैनुअल का हिस्सा है। जैसे ही डॉक्टर कैदी को मृत घोषित कर देता है और उसकी लाश फंदे पर से उतार ली जाती है, उसके बाद फांसी की प्रक्रिया खत्म हो जाती है। फिर जेल में दोबारा सारे काम शुरू हो जाते हैं।
बैरक से काफी दूर है फांसी कोठी
तिहाड़ जेल का निर्माण 1958 में हुआ था। अंग्रेजों के जमाने में ही वहां फांसी घर (फांसी कोठी) का नक्शा बना दिया गया था। ये फांसी कोठी तिहाड़ के जेल नंबर तीन में कैदियों के बैरक से बहुत दूर बिल्कुल अलग सुनसान जगह पर है। जिस बिल्डिंग में फांसी कोठी बनी है उस बिल्डिंग में कुल 16 डेथ सेल हैं। बता दें डेथ सेल वो जगह होती है जहां सिर्फ उन्हीं कैदियों को रखा जाता है, जिन्हें मौत की सजा मिली है। डेथ सेल में कैदी को अकेला रखा जाता है। उसे 24 घंटे में सिर्फ आधे घंटे के लिए ही बाहर निकाला जाता है।
तमिलनाडु स्पेशल पुलिस करती डेथ सेल की पहरेदारी
जानकारी के मुताबिक, डेथ सेल की पहरेदारी तमिलनाडु स्पेशल पुलिस करती है। यहां दो-दो घंटे की शिफ्ट में काम किया जाता है। इनका काम मौत की सजा मिलने वाले कैदियों पर नजर रखना होता है, ताकि वे खुदकुशी न कर लें। डेथ सेल में कैदियों को कोई भी चीज खुद करने की इजाजत नहीं दी जाती है।