चैतन्य भारत न्यूज
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार देवउठनी एकादशी 25 नवंबर को पड़ रही है। देवउठनी या देवोत्थान एकादशी पर श्री विष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। आइए जानते हैं आखिर क्यों मनाई जाती है देवउठनी एकादशी और इसका शुभ मुहूर्त।
इसलिए मनाई जाती है देवउठनी एकादशी
पुराणों के मुताबिक, भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच युद्ध लंबे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। फिर वे क्षीरसागर में आकर सो गए और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवी-देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। इसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। देवश्यनी एकादशी के बाद से सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं। जो कि देवउठनी एकादशी पर ही आकर फिर से शुरू होते हैं।
इस दिन तुलसी विवाह का महत्व
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। भगवान शालिग्राम के साथ तुलसीजी का विवाह होता है। पौराणिक कथा के मुताबिक, जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्त के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता की विनती के बाद उन्हें वापस सही कर दिया था। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ जिसके बाद से ही शालिग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ।
देवउठनी एकादशी मंत्र
“उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुणध्वज।
उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।।”