चैतन्य भारत न्यूज
22 अगस्त से गणेश उत्सव की शुरुआत हो गई है। प्रत्येक घर में गणेश जी के अलग-अलग स्वरूपों की स्थापना की जाती है। बता दें भगवान गणेश के कुल 8 स्वरुप हैं। इनमें से पांचवा स्वरुप ‘लंबोदर’ है। भगवान गणेश को क्यों ‘लंबोदर’ कहा जाता है? आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी-
लंबोदर क्यों बने गणेश?
पुराणों में बताया गया कि एक बार भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती को जीवन और मृत्यु चक्र के बारे में बता रहे थे। भगवान नहीं चाहते थे उनकी और माता पार्वती के बीच की ये बातें कोई और सुने। इसके लिए उन्होंने कैलाश पर्वत पर एक गुप्त स्थान को चुना और यहां आकर वह माता पार्वती को जीवन और मृत्यु से जुड़ी कहानियां सुनाने लगे।
इस दौरान भगवान शिव ने गणेशजी को एक द्वारपाल के रूप में तैनात कर दिया कि कोई उनकी बातें सुनने के लिए अंदर गुफा में न आने पाए। पिता की आज्ञा मानकर भगवान गणेश द्वारपाल के रूप में वहां पर तैनात हो गए। कुछ समय में बाद इंद्रदेव अन्य देवताओं की टोली के साथ वहां पहुंच गए और भगवान शंकर से मिलने के लिए कहने लगे। किंतु पिता की आज्ञा के अनुसार, गणेशजी इंद्र और बाकी देवताओं को वहां जाने से रोकने लगे।
गणेशजी के व्यवहार से इंद्र देवता नाराज हो गए। देखते ही देखते इंद्र देव और गणेशजी के बीच जंग शुरू हो गई। दोनों के बीच छिड़ी जंग में भगवान गणेश ने इंद्र देवता को पराजित कर दिया। लेकिन युद्ध करते-करते वह काफी थक गए और उन्हें भूख लग गई। तब उन्होंने ढेर सारे फल खाए और खूब सारा गंगाजल पिया। भूख-प्यास अधिक लगने के कारण वह खाते गए खाते और पानी पीते गए और देखते ही देखते उनका उदर (पेट) बड़ा होता चला गया। तब उनके पिता भगवान शिव की नजर उन पर पड़ी तो उनके लंबे उदर को देखकर वह उन्हें लंबोदर पुकारने लगे। इसके बाद से ही गणेशजी के कई नामों में एक लंबोदर भी जुड़ गया और वह लंबोदर कहलाने लगे।