चैतन्य भारत न्यूज
22 अगस्त से गणेश उत्सव की शुरुआत हो गई है। आज गणेश विसर्जन का दिन है। बता दें भगवान गणेश के कुल 8 स्वरुप हैं। इनमें से सातवां स्वरुप ‘विघ्नराज’ जो विष्णु ब्रह्म का धारक है, यह शेषनाग पर विराजमान है। श्री गणेश का यह अवतार ममतासुर का वध करने वाला है। लेकिन भगवान गणेश को क्यों ‘विघ्नराज’ कहा जाता है? आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी-
विघ्नराज क्यों बने गणेश?
पुराणों में बताया गया कि माता पार्वती अपनी सखियों से बात करती हुई हंस पड़ीं। उनके हास्य से एक पुरुष का जन्म हुआ। वह देखते ही देखते पर्वताकार हो गया। पार्वती जी ने उसका नाम ममतासुर रखा। उन्होंने उससे कहा कि तुम जाकर गणेश का स्मरण करो। उनके स्मरण से तुम्हें सब कुछ मिल जाएगा। माता पार्वती ने उसे गणेशजी का षडक्षर मंत्र प्रदान किया। ममतासुर माता के चरणों में प्रणाम कर वन में तप करने चला गया। वहां उसकी शम्बासुर से भेंट हुई। उसने ममतासुर को समस्त विद्याएं सिखा दीं। उन विद्याओं के अभ्यास से ममतासुर को सारी शक्तियां प्राप्त हो गईं।
इसके बाद शम्बासुर ने ममतासुर को विघ्नराज की उपासना की प्रेरणा दी। ममतासुर वहीं बैठकर कठोर तप करने लगा। वह केवल वायु पर रहकर विघ्नराज का ध्यान करता था। उसके कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर विघ्नराज प्रकट हुए। ममतासुर ने विघ्नराज जी से समस्त ब्रह्माण्ड का राज्य तथा युद्ध में आने वाले समस्त विघ्नों के न आने का वरदान मांगा। गणेश जी ने कहा कि, ‘ये बहुत दुसाध्य वर मांगा है परंतु मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं इसलिए ये वर मैं तुम्हें प्रदान अवश्य करूंगा। तथास्तु कह कर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए।’
तपस्या पूरी होने के बाद ममतासुर ने शम्बासुर से भेंट की। कुछ समय बाद ममतासुर ने विश्वविजय की घोषणा कर दी और समस्त पृथ्वी पर आक्रमण करके इसकी शुरुआत भी कर दी। ममतासुर ने पृथ्वी तथा पाताल दोनों लोकों को जीत लिया। फिर स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया जल्द ही स्वर्ग भी ममतासुर के अधीन हो गया। इतना ही नहीं बल्कि शिवलोक, विष्णुलोक, ब्रह्मलोक सब बलशाली असुर के अधीन हो गए, स्वर्ग लोक के देवी देवता अपने स्थानों से दर-दर भटकने लगे। इसके बाद सभी देवताओं ने इस विपत्ति के समाधान हेतु श्री विघ्नराज की उपासना की। कठोर तपस्या के पश्चात श्री विघ्नराज प्रकट हुए। सभी देवी देवताओं ने श्री विघ्नराज से ममतासुर के अत्याचारों से मुक्ति तथा धर्म के उद्धार के लिए प्रार्थना की। श्री विघ्नराज ने सभी देवी देवताओं को चिंतामुक्त होने का आश्वासन दिया।
इस बीच नारद ने ममतासुर से कहा कि तुम अत्याचार और अधर्म का मार्ग छोड़कर विघ्नराज श्री गणेश की शरण में आ जाओ अन्यथा तुम्हारा सर्वनाश निश्चित है लेकिन ममतासुर नहीं माना। उसकी इस मुर्खता से श्री विघ्नराज क्रोधित हो गए। विघ्नराज ने अपना पुष्प कमल असुर सेना में छोड़ दिया उसकी गंध से समस्त असुर सेना मुर्छित और शक्ति हीन हो गई। तब ममतासुर पत्ते की भांति थर-थर कांपने लगा और श्री विघ्नराज के चरणों में गिर गया। वहीं श्री विघ्नराज ने ममतासुर को क्षमा कर दिया। इसके बाद से ही गणेश के अवतार विघ्नराज की जय जय कार होने लगी।