चैतन्य भारत न्यूज
गणेशोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। इसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता श्री गणेश का जन्म हुआ था। इस पर्व को देश भर में खास तौर से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में हर्षोल्लास, उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है। श्री गणेश माता पार्वती और शिवजी के बेटे हैं। गणेश चतुर्थी के मौके पर आइए जानते हैं गणेश की जन्म कथा।
श्री गणेश की जन्म कथा
कहा जाता है कि देवी पार्वती ने एक बार शिव के गण नंदी के द्वारा उनकी आज्ञा के पालन में त्रुटि के कारण अपने शरीर के मैल और उबटन से एक बालक का निर्माण कर उसमें प्राण डाल दिए और कहा कि ‘तुम मेरे पुत्र हो। तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना और किसी की नहीं। हे पुत्र! मैं स्नान के लिए भोगावती नदी जा रही हूं। कोई भी अंदर न आने पाए।’ कुछ देर बाद वहां भगवान शंकर आए और पार्वती के भवन में जाने लगे। यह देखकर उस बालक ने उन्हें रोकना चाहा, बालक हठ देखकर भगवान शंकर क्रोधित हो गए। इसे उन्होंने अपना अपमान समझा और अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर भीतर चले गए।
जब इस बारे में माता पार्वती को पता लगा तो वह बाहर आईं और रोने लगीं। उन्होंने शिवजी से कहा कि, आपने मेरे बेटा का सिर काट दिया। शिवजी ने पूछा कि ये तुम्हारा बेटा कैसे हो सकता है? इसके बाद माता पार्वती ने शिवजी को पूरी कथा बताई।
शिवजी ने माता पार्वती को मनाते हुए कहा कि, ‘ठीक है मैं इसमें प्राण डाल देता हूं, लेकिन प्राण डालने के लिए एक सिर चाहिए।’ इस पर उन्होंने गरूड़ जी से कहा कि, ‘उत्तर दिशा में जाओ और वहां जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सोई हो उस बच्चे का सिर ले आना।’
गरूड़ जी भटकते रहे पर उन्हें ऐसी कोई मां नहीं मिली क्योंकि हर मां अपने बच्चे की तरफ मुंह कर के सोती है। अंतत: उन्हें एक हथिनी दिखाई दी। हथिनी का शरीर का प्रकार ऐसा होता हैं कि वह बच्चे की तरफ मुंह कर के नहीं सो सकती है। गरूड़ जी उस शिशु हाथी का सिर ले आए। भगवान शिवजी ने वह बालक के शरीर से जोड़ दिया। उसमें प्राणों का संचार कर दिया। उनका नामकरण कर दिया। इस तरह श्रीगणेश को हाथी का सिर लगा। इसके बाद से भगवान गणेश को गजमुख भी कहा जाने लगा।