चैतन्य भारत न्यूज
गोवत्स द्वादशी पर्व कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इसे बछ बारस का पर्व भी कहते हैं। गुजरात में इसे वाघ बरस भी कहते हैं। गोवत्स द्वादशी के दिन गाय माता और बछड़े की पूजा की जाती है। इस बार गोवत्स द्वादशी 25 अक्टूबर को पड़ रही है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और विधि विधान से पूजा करती हैं। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व और पूजा-विधि।
गोवत्स द्वादशी का महत्व
यह पर्व पुत्र की मंगल-कामना के लिए किया जाता है। इस पर्व पर गीली मिट्टी की गाय, बछड़ा, बाघ तथा बाघिन की मूर्तियां बनाकर पाट पर रखी जाती हैं तब उनकी विधिवत पूजा की जाती है। हिंदू धर्म के मुताबिक, गौमाता की पीठ पर ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं। मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी का व्रत से व्यक्ति को सारे दुखों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए भी यह व्रत करती है।
गोवत्स द्वादशी पूजा-विधि
- इस दिन महिलाएं घर आंगन लीप कर चौक पूरती हैं।
- इसके बाद उसी चौक में गाय खड़ी करके चंदन अक्षत, धूप, दीप नैवैद्य आदि से विधिवत पूजा की जाती हैं।
- इस दिन खाने में चने की दाल जरूर बनती है।
- कहा जाता है कि व्रत करने वाली महिलाओं को गोवत्स द्वादशी के दिन गेहूं, चावल आदि जैसे अनाज नहीं खाना चाहिए।
- पूजा में धान या चावल का इस्तेमाल गलती से भी ना करें।