चैतन्य भारत न्यूज
18 जून को सिखों के छठें गुरु हर गोबिंद सिंह जी की जयंती है। इस खास अवसर पर गुरुद्वारे में कीर्तन दरबार, अखंड पाठ के साथ-साथ लंगर का आयोजन होता है। शौर्य और साहस के प्रतीक गुरु हर गोबिंद साहिब जी का प्रकाश पर्व हर वर्ष बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
गुरु हर गोबिंद सिंह का जन्म अमृतसर के वडाली गांव में माता गंगा और पिता गुरु अर्जुन देव के यहां संवत 1652 में हुआ था। उन्हें महज 11 साल की उम्र में ही गुरु की उपाधि मिल गई थी। गुरु हर गोबिंद को अपने पिता और सिखों के 5वें गुरु अर्जुन देव के द्वारा यह उपाधि प्राप्त हुई थी। बता दें गुरु हर गोबिंद को सिख धर्म में वीरता की नई मिसाल करने के लिए भी जाना जाता है।
गुरु हर गोबिंद अपने साथ हमेशा मीरी तथा पीरी नाम की दो तलवारें धारण करते थे। उनकी एक तलवार धर्म के लिए और दूसरी तलवार धर्म की रक्षा के लिए होती थी। जब मुगल शासक जहांगीर के आदेश पर गुरु अर्जुन सिंह को फांसी दे दी गई उस समय गुरु हर गोबिंद ने ही सिखों का नेतृत्व संभाला था। उन्होंने सिख धर्म में एक नई क्रांति को जन्म दिया जिससे पर आगे चलकर सिखों की विशाल सेना तैयार हुई।
गुरु हर गोबिंद ने अकाल तख्त का निर्माण किया था। साथ ही उन्होंने ही मीरी पीरी तथा कीरतपुर साहिब की स्थापना की थी। गुरु हर गोबिंद ने रोहिला की लड़ाई, कीरतपुर की लड़ाई, हरगोविंदपुर, करतारपुर, गुरुसर तथा अमृतसर जैसी लड़ाइयों में प्रमुखता से भागीदारी निभाई थी। हर गोविंद सिंह युद्ध में शामिल होने वाले पहले गुरु माने जाते हैं। गुरु हर गोबिंद जी ने मुगलों के अत्याचारों से पीड़ित अनुयायियों में इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास पैदा किया था।
सिखों की मजबूत स्थिति होते देख मुगल बादशाह जहांगीर ने गुरु हर गोबिंद को ग्वालियर में कैद कर लिया। वह 12 वर्षों तक वहीं पर कैद रहे थे। इस दौरान उनके प्रति सिखों की आस्था और अधिक मजबूत होती गई। गुरु हर गोबिंद ने रिहा होते ही शाहजहां के खिलाफ बगावत कर दी। युद्ध में उन्होंने शाही फौज को हरा दिया। गुरु हर गोबिंद ने अपने अंतिम समय में कश्मीर के पहाड़ों में शरण ली। सन् 1644 ई. में कीरतपुर, पंजाब में उनकी मृत्यु हो गई।