चैतन्य भारत न्यूज
इंदौर. मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के पास गौतमपुरा में हर साल दिवाली के दूसरे दिन यानी गोवर्धन पूजा पर ‘हिंगोट युद्ध खेला’ जाता है। इस पारंपरिक युद्ध में प्रयोग किया जाने वाले हथियार हिंगोट होता है, जो कि एक जंगली फल है। लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इस बार हिंगोट युद्ध नहीं होगा। कोरोना के कारण के 200 साल बाद यह परंपरा टूट गई है।
क्या है हिंगोट?
हिंगोट एक फल है, जो हिंगोरिया नाम के पेड़ पर लगता है। आंवले के आकार वाले फल से गूदा निकालकर इसे खोखला कर लिया जाता है। इसके बाद हिंगोट को सुखाकर इसमें खास तरीके से बारूद भरी जाती है। नतीजतन आग लगाते ही यह रॉकेट जैसे पटाखे की तरह बेहद तेज गति से छूटता है और लंबी दूरी तय करता है।
लंबे समय से है यह परंपरा
स्थानीय लोगों का कहना है कि गौतमपुरा के लड़ाके सालों पहले मुगलों से गांवो को बचाने के लिए उनकी सेना पर इस तरह के प्रहार करते थे, इसके बाद से ही यह परंपरा चली आ रही है। पुरानी यादों के साथ ही धीरे-धीरे ग्रामीणों की आस्था जुड़ गई।
यहां के बुजुर्गों के मुताबिक, हिंगोट युद्ध एक किस्म के अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था और कालांतर में इससे धार्मिक मान्यताएं जुड़ती चली गईं। हिंगोट के समय गांव में उत्सव का माहौल रहता है। यहां आने वाले दर्शकों के बैठने के लिए उत्तम व्यवस्थाएं की जाती हैं। हजारों दर्शकों की मौजूदगी में होने वाले इस ‘हिंगोट युद्ध’ में हर साल कई लोग घायल होते हैं।