चैतन्य भारत न्यूज
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा गया है। इस बार होलिका दहन 29 मार्च को होगा, इसलिए होलाष्टक 22 मार्च से 28 मार्च तक रहने वाले हैं। इस दौरान सभी शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित होते हैं, लेकिन जन्म और मृत्यु से जुड़े काम किए जा सकते हैं।
प्राचीन मान्यता के अनुसार इस अवधि में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक होता है। इस नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को समाप्त करने के लिए ही होलिका का निर्माण किया जाता है। आइए जानते हैं होलाष्टक का महत्व और इसके नियम।
होलाष्टक का महत्व
मान्यता है कि होलाष्टक की शुरुआत वाले दिन ही शिव जी ने कामदेव को भस्म कर दिया था। इस काल में वह हर दिन अलग-अलग ग्रह उग्र रूप में होते हैं। इसलिए होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं करते हैं। जिस दिन यह घटना हुई थी वह फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि थी। इस घटना के आठ दिनों के बाद देवताओं और देवी रति के क्षमा मांगने पर भगवान शिव ने कामदेव के फिर से जीवत होने को वरदान दिया, जिसके बाद से यह आठ दिन अशुभ माना गया और नवमें दिन कामदेव के फिर जीवित होने की खुशी में रंगोत्सव मनाया गया।
होलाष्टक के दौरान न करें ये काम
- होलाष्टक के आठ दिनों में कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते हैं।
- माना जाता है कि अगर कोई शुभ काम इन दिनों में किया जाए तो वह सफल नहीं होता और हमें उसके नकारात्मक परिणाम प्राप्त होता हैं।
- किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किया जाता है।
- होलाष्टक के दिनों में कोई भी नया व्यवसाय या नया काम शुरू करने से भी बचना चाहिए।
- इसके अलावा भूमि पूजन भी नहीं करना चाहिए।
- कोई भी यज्ञ या हवन कार्य नहीं करना चाहिए।