चैतन्य भारत न्यूज
विज्ञान हर नए अनुसंधान के साथ मानव जीवन को अधिक सरल बनाता चला जा रहा है। इसने जीवन को सरल, आसान और तेज बना दिया है। अब वैज्ञानिक यह जानने के बिलकुल करीब आ गए है कि हम बातचीत के दौरान तेजी से बोली जाने वाली भाषा को कैसे समझ लेते हैं।
वैज्ञानिकों ने कहा कि, इसमें हमारी मदद मस्तिष्क में न्यूरॉन कम्प्यूटेशन (गणनाओं) का एक जटिल समूह करता है। कहा जा रहा है कि, हाल ही में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने ‘नॉवेल कम्प्यूटेशन मॉडल’ विकसित किया है। इसकी मदद से शोधकर्ताओं ने शब्दों के अर्थ को सीधे वॉलिंटियर्स के दिमाग में रियल टाइम दिमागी गतिविधि के साथ परीक्षण किया।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर स्पीच, भाषा और मस्तिष्क विभाग के निदेशक और शोध की प्रमुख लॉरेन टाइलर ने बताया कि, शब्दों को उनके संदर्भ में रखने के हमारी क्षमता उनके आसपास के अन्य शब्दों के आधार पर तय होती है। किसी भी भाषा को समझकर उसके अनुसार प्रतिक्रिया करने की दिमाग की इस विशेषता को ‘सीमैंटिक कम्पोजिशन’ कहते हैं।
उन्होंने कहा कि, इस प्रक्रिया में हमारे दिमाग सुने गए शब्दों और उनके अर्थों को एक वाक्य में जोड़ता है ताकि पहले से दिमाग के मेमोरी बॉक्स में संचित शब्दों के साथ उनकी तुलना कर प्रतिक्रिया कर सके। यह सब मिली सेकंड्स भी कम समय में होता है। टाइलर का कहना है कि, जैसे ही हम कोई शब्द सुनते हैं तो सीमैंटिक कम्पोजिशन मस्तिष्क को विवश करता है कि वह इस वाक्य के अगले शब्द की व्याख्या करें।