चैतन्य भारत न्यूज
अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए न जाने कितने लोगों ने अपनी जानें कुर्बान कर दीं। इन्हीं में से एक हैं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति रहीं झलकारी बाई, जिनकी बहादुरी की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जाती है। आज (22 नवंबर) झलकारी बाई की 190वीं जयंती है। इस मौके पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं झलकारी बाई के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।
- झलकारी बाई का जन्म बुंदेलखंड के एक गांव में 22 नवंबर को एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोवा (उर्फ मूलचंद कोली) और माता जमुनाबाई (उर्फ धनिया) था। झलकारी बचपन से ही साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी।
- वह बचपन में घर का काम निपटाकर पशुओं के रखरखाव पर भी ध्यान देती थी। साथ ही साथ जंगलों से लकड़ियां भी इकट्ठा करने जाती थीं।
- झलकारी का विवाह झांसी की सेना में सिपाही रहे पूरन कोली नामक युवक के साथ हुआ। पूरे गांव वालों ने झलकारी बाई के विवाह में भरपूर सहयोग दिया। विवाह पश्चात वह पूरन के साथ झांसी आ गई।
- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में वे महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं, इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं।
- साल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अग्रेंजी सेना से रानी लक्ष्मीबाई के घिर जाने पर झलकारी बाई ने बड़ी सूझबूझ, स्वामीभक्ति और राष्ट्रीयता का परिचय दिया था।
- झलकारी बाई ने अपने अंतिम समय में रानी के वेश में युद्ध किया था, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें पकड़ लिया था। हालांकि वह रानी लक्ष्मीबाई को किले से भाग निकालने में कामयाब हो गई थीं।
- झलकारी बाई युद्ध के दौरान 4 अप्रैल 1858 को वीरगति को प्राप्त हुईं।
- झलकारी बाई के सम्मान में भारत सरकार ने 22 जुलाई, 2001 को डाक टिकट भी जारी किया।
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