चैतन्य भारत न्यूज
करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस बार करवा चौथ व्रत 4 नवंबर को है। इस दिन सुहागिन महिलाएं ना सिर्फ व्रत करती है बल्कि पूरे साज और 16 श्रृंगार के साथ चांद की पूजा भी करती हैं। चांद को अर्घ्य देने के बाद वो छलनी से चांद को देखती हैं और फिर उसी छलनी से अपने पति की सूरत निहारती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि करवा चौथ पर चांद को छलनी से क्यों देखा जाता है? अगर नही तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की वजह।
इसलिए देखा जाता छलनी से चांद
हिंदू धर्म के मुताबिक, चांद को ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि चांद के वरदान से इंसान को लंबी आयु मिलती है। चांद को सुंदरता, शीतलता, प्यार, सिद्धी और प्रसिद्धी के लिए पूजा जाता है। इसलिए करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं छलनी से पहले चांद देखती हैं फिर अपने पति का चेहरा। वह चांद को देखकर यह कामना करती हैं कि उनके पति में भी चांद जैसे सारे गुण आ जाएं।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, प्राचीन काल में एक साहूकार था जिसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। बड़े होने पर साहूकार ने अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। विवाह के बाद उसकी पुत्री ने अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। रात में जब उसके सभी भाई भोजन करने बैठे तब उन्होंने अपनी बहन से भी साथ बैठकर भोजन करने के लिए कहा। तब बहन ने कहा कि, चांद निकलने पर उसे अर्घ्य देकर मैं भोजन करुंगी।
भाइयों से बहन की ऐसी हालत देखी नहीं गई तो उन्होंने चांद के निकलने से पहले ही एक पेड़ पर चढ़कर छलनी के पीछे एक जलता हुआ दीपक रखकर बहन से कहा कि, चांद निकल आया है। बहन ने भाइयों की बात मान ली और दीपक को चांद समझकर अपना व्रत खोल लिया और व्रत खोलने के बाद उनके पति की मुत्यु हो गई और ऐसा कहा जाने लगा कि असली चांद को देखे बिना व्रत खोलने की वजह से ही उनके पति की मृत्यु हुई थी। ऐसा छल किसी और सुहागिन के साथ ना हो इसलिए छलनी से दीया रखकर चांद देखने की प्रथा शुरू हुई।
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