चैतन्य भारत न्यूज
विश्व प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ धाम के कपाट विधि विधान और पूजा-अर्चना के बाद खुल गए हैं। बुधवार को मेंष लग्न, पुनर्वसु नक्षत्र में प्रातः 06 बजकर 10 मिनट पर विधि-विधान पूर्वक बाबा केदार के कपाट खुले। केदारनाथ यात्रा के इतिहास में यह पहला मौका है जब मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर मंदिर परिसर पूरी तरह खाली रहा। हर वर्ष कपाट खुलने के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं लेकिन इस बार कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण कपाट खुलने के दौरान महज 15-16 लोग ही मौजूद रहे। इस बार मंदिर परिसर में भक्तों के बम-बम भोले के जयघोषों की गूंजों की कमी खली।
10 क्विंटल फूलों से सजा मंदिर
देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि सबसे पहले मुख्य पुजारी ने भगवान केदारनाथ की डोली की पूजा की और भोग लगाया। उसके बाद मंत्रोच्चारण के बीच मंदिर के कपाट खोले गए। फिर डोली ने मंदिर में प्रवेश किया। इसके बाद पुजारियों ने मंदिर की सफाई की, भगवान की पूजा की और भोग लगाया। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से पहली पूजा की गई। इस अवसर पर मंदिर को10 क्विंटल फूलों से सजाया गया था। सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष तौर से ध्यान रखा गया।
मंदिर और यात्रा से जुड़ी कई परंपराओं को इस बार बदलना पड़ा
लॉकडाउन के चलते इस बार मंदिर और यात्रा से जुड़ी कई परंपराओं में बदलाव करना पड़ा। केदारनाथ मंदिर के रावल कपाट खुलने के दौरान मौजूद नहीं थे। दरअसल वह 19 अप्रैल को महाराष्ट्र से उत्तराखंड पहुंचे और अब वह ऊखीमठ में 14 दिन के क्वारंटाइन में हैं। रावल 3 मई को केदारनाथ पहुंचेंगे। केदारनाथ की डोली इस बार दो ऊखीमठ से दो दिन में ही पहुंच गई। लॉकडाउन के कारण उसे गाड़ी में लाया गया। बता दें यह दूसरा मौका है जब डोली गाड़ी में आई है। इससे पहले देश में इमरजेंसी के दौरान भी गाड़ी से डोली को लाया गया था। बता दें बद्रीनाथ धाम के कपाट पहले 30 अप्रैल को खुलने वाले थे लेकिन अब वह 15 मई को खुलेंगे।
केदारनाथ शिवलिंग माना जाता है स्वयंभू
केदारनाथ देशभर में मौजूद बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ये मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखंड में मौजूद यह 1000 साल पुराना मंदिर हर साल सर्दियों के छह महीने बंद रहता है। हर साल गर्मी के दिनों में ये मंदिर भक्तों के लिए खोला जाता है। अन्य ऋतुओं में यहां का वातावरण प्रतिकूल रहता है, इस वजह से मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। करीब 6 महीने तक यहां दर्शन और यात्रा चलती है। इसके बाद कार्तिक माह यानी अक्टूबर-नवंबर में फिर कपाट बंद हो जाते हैं। 12 ज्योतिर्लिंगों में यह सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बना मंदिर है, जिसे आदि शंकराचार्य ने बनवाया था। मान्यता है कि ये स्वयंभू शिवलिंग है। स्वयंभू शिवलिंग का अर्थ है कि यह स्वयं प्रकट हुआ है।
केदारनाथ धाम से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं…
शिवपुराण की कोटीरुद्र संहिता में बताया गया है कि, प्राचीन समय में बदरीवन में विष्णुजी के अवतार नर-नारायण इस क्षेत्र में पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करते थे। नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी प्रकट हुए। शिवजी ने नर-नारायण से वरदान मांगने को कहा, तब सृष्टि के कल्याण के लिए नर-नारायण ने वर मांगा कि शिवजी हमेशा इसी क्षेत्र में रहें। शिवजी ने कहा कि अब से वे यहीं रहेंगे और ये क्षेत्र केदार क्षेत्र के नाम से जाना जाएगा। शिवजी ने नर-नारायण को वरदान देते हुए कहा था कि जो भी भक्त केदारनाथ के साथ ही नर-नारायण के भी दर्शन करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होगा और उसे अक्षय पुण्य मिलेगा। शिवजी ज्योति स्वरूप में यहां स्थित शिवलिंग में समा गए।