चैतन्य भारत न्यूज
मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरवाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस बार भैरवाष्टमी 19 नवंबर को पड़ रही है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था। कहते हैं भैरवाष्टमी के दिन भगवान शिव की पूरे विधि-विधान से पूजा करने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। आइए जानते हैं भैरवाष्टमी का महत्व और इसकी पूजन-विधि।
भैरवाष्टमी का महत्व
भैरव बाबा का हिंदू देवताओं में बहुत अधिक महत्त्व है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इन्हें दिशाओं का रक्षक और काशी का संरक्षक भी कहा जाता है। कालभैरव की पूजा से रोग, शोक, दुखः, दरिद्रता से मुक्ति मिलती है और जीवन सुखमय होता है। कहते हैं अगर इस दिन भैरव जी के वाहन कुत्ते को गुड़ खिलाया जाए तो दसों दिशाओं में नकारात्मक प्रभावों समाप्त हो जाता और पुत्र की भी प्राप्ति होती है।
भैरवाष्टमी पूजन-विधि
- इस दिन काले कुत्ते को भोजन जरूर कराना चाहिए। बता दें कुत्ता भैरव देव का वाहन होता है।
- भैरव बाबा की पूजा के साथ-साथ माता वैष्णो देवी की भी पूजा करनी चाहिए।
- पूजा के दौरान भगवान शिव की पूजा और काल भैरव की कथा जरूर सुने।
- इस दिन गरीबों में अन्न और वस्त्र का दान करना चाहिए।
- इस दिन कालभैरव के मंदिर में जाकर उनकी प्रतिमा पर सिंदूर और तेल चढ़ाएं और मूर्ति के सामने बैठकर काल भैरव मंत्र का जाप करें।
- भैरव की प्रिय वस्तुएं जैसे काले तिल, उड़द, नींबू, नारियल, अकौआ के पुष्प, कड़वा तेल, सुगंधित धूप, पुए, मदिरा और कड़वे तेल से बने पकवान दान कर सकते हैं।
- मान्यता है जो व्यक्ति भैरवाष्टमी व्रत रखता है उसके सारे कष्ट मिट जाते हैं।
- इस व्रत को करने से रोगों से भी मुक्ति मिलती है।