चैतन्य भारत न्यूज
लुधियाना. दूसरे विश्व युद्ध से लेकर देश के लिए चार बड़े युद्ध लड़ने वाले 102 वर्षीय मेजर गुरदयाल सिंह का शनिवार को निधन हो गया है। इस महान हीरो को अंतिम सलामी देने के लिए भारतीय सेना के अधिकारी विशेष तौर पर लुधियाना पहुंचे। उनके अंतिम संस्कार में कोई भी प्रशासनिक अधिकारी और नेता नहीं पहुंचा. सेना के अधिकारियों ने उनके पार्थिव देह को तिरंगे में लपेट कर श्रद्धांजलि दी।
पिता लड़ चुके हैं प्रथम विश्व युद्ध
मेजर गुरदयाल सिंह का जन्म 21 अगस्त 1917 को लुधियाना के गांव हरनामपुरा में हुआ था। मेजर गुरदयाल सिंह के पिता रिसालदार दलीप सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में तैनात थे। पहले विश्व युद्ध के समय वह मेसोपोटामिया में तैनात रहे थे। मेजर गुरदयाल ने रॉयल इंडियन मिलिट्री स्कल जालंधर में शिक्षा ली। जून 1935 में माउंटेन आर्टिलरी ट्रेनिंग ज्वाइन की। ट्रेनिंग खत्म होने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग 14 राजपूताना माउंटेन बैटरी एबटाबाद (पाकिस्तान) में हुई थी।
मेजर गुरदयाल ने लड़े ये युद्ध
साल 1944-45 में हुए दूसरे विश्व युद्ध के समय मेजर गुरदयाल सिंह बर्मा (म्यांमार) में तैनात थे। इस युद्ध में एक जापानी जवान ने उन पर हमला कर दिया था। उस समय मेजर गुरदयाल सिंह के पेट में गोली लगी थी। इससे पहले कि जापानी जवान दूसरी गोली चलाता, मेजर के साथियों ने उसे वहीं ढेर कर दिया। फिर मेजर गुरदयाल सिंह ने 1947-48 में जम्मू-कश्मीर में हुए युद्ध में भी अहम भूमिका निभाई। साल 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय भी मेजर को भारतीय सेना की तरफ से अमृतसर सेक्टर में देश की सेवा करने का मौका मिला, यहां पर वह गनर अफसर के तौर पर तैनात रहे। 1967 में वह भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हो गए थे।
परिवार में जारी है देश सेवा का भाव
देश सेवा का भाव परिवार में आगे इसी तरह जारी रहा। मेजर गुरदयाल सिंह के दो बेटे हैं। उनके बड़े बेटे हरजिंदरजीत सिंह बतौर कर्नल भारतीय वायुसेना से 2001 में रिटायर हुए। जबकि छोटे बेटे हरमंदरजीत सिंह भारतीय सेना से बतौर कर्नल 2004 में रिटायर हो चुके हैं। अब इस परिवार की चौथी पीढ़ी यानी मेजर गुरदयाल का पोता कर्नल कर्ण गुरमिंदर सिंह भी देश की सेवा में तैनात हैं। इतना ही नहीं बल्कि उनकी पत्नी लेफ्टिनेंट कर्नल मंदीप कौर भी सेना में डॉक्टर हैं।