चैतन्य भारत न्यूज
सावन के पावन महीने में भगवान शिव की आराधना की जाती है। इस महीने में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग का पूजन करना बेहद शुभ माना जाता है। आज हम आपको दूसरे ज्योतिर्लिंग यानी मल्लिकार्जुन की विशेषता के बारे में बताएंगे।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का महत्व
भगवान शिव के प्रमुख 12 ज्योतिर्लिंगों में मल्लिकार्जुन का स्थान दूसरा है। मल्लिकार्जुन दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें ‘मल्लिका’ माता पार्वती का नाम है, जबकि ‘अर्जुन’ भगवान शंकर को कहा जाता है। इसलिए भगवान शिव को मल्लिकार्जुन के रूप में पूजा जाता है। इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती का भी आशीर्वाद मिलता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जो मनुष्य इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है तथा उसे सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। मल्लिकार्जुन 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि, जब भगवान शिव ने सती के जल जाने पर उनके शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में तांडव किया था, तब उनके शरीर के अंगों को भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से काट दिया था जो 52 स्थानों पर जा गिरे थे। इस दौरान सती के होंठ का ऊपरी हिस्सा, मल्लिकार्जुन में गिरा था। इसलिए इस स्थान की यात्रा करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
कहां है और कैसे पहुंचे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्रप्रदेश में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है। यह दक्षिण दिशा में स्थित है इसलिए इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं। यह हैदराबाद से 250 किलोमीटर की दूरी पर कुर्नूल के पास है। यहां से हैदराबाद का राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। इसके अलावा यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन भी मर्कापुर रोड है जो श्रीशैलम से 62 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से आप बस या फिर टैक्सी के जरिए मल्लिकार्जुन पहुंच सकते हैं।