चैतन्य भारत न्यूज
पूरी दुनिया इसी बात का इंतजार कर रही है कि हमें कब कोरोना की वैक्सीन लगेगी। इसके लिए वैक्सीन निर्माता दिन-रात काम में जुटे हुए हैं। लेकिन इसमें और ज्यादा देरी हो सकती है क्योंकि वैज्ञानिकों को अब नई समस्या से जूझना पड़ रहा है, और वह है रिसर्च के लिए बंदरों की कमी। जी हां… रॉकविले स्थित बायोक्वॉल के सीईओ मार्क लुईस पिछले काफी दिनों से बंदरों की खोज कर रहे हैं। लेकिन उन्हें अब तक सफलता हाथ नहीं लगी है।
बता दें बायोक्वॉल फर्म पर भारत की रिसर्च लैब के अलावा मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी दवा कंपनियों को भी बंदर पहुंचाने की जिम्मेदारी है। लुईस ने कहा कि, ‘वैक्सीन बनाने में बंदरों की भूमिका अहम है। पर पिछले साल कोरोना ने जिस तरह अमेरिका को चपेट में लिया, इसके चलते एक खास किस्म के बंदरों की कमी हो गई है। इनकी कीमत भी दोगुनी हो गई है।’
आलम यह है कि 7।25 लाख रुपए में भी एक बंदर नहीं मिल रहा है। ऐसे में कई सारी कंपनियों को एनिमल रिसर्च रोकनी पड़ी है। लुईस ने बताया कि, समय पर बंदर सप्लाई न देने के कारण हमें काम रोकना पड़ा है। अमेरिकी शोधकर्ताओं का कहना है कि, बंदर वैक्सीन का परीक्षण करने में उपयोगी होते हैं। उनका डीएनए और प्रतिरक्षा प्रणाली लगभग इंसान के समान होती है।
बंदरों के लिए चीन पर निर्भरता
बंदरों की कमी पड़ने की एक बड़ी वजह चीन भी है। दरअसल, इस देश ने हाल ही में जंगली जानवरों की बिक्री बैन कर दी है। लैब एनिमल का सबसे बड़ा सप्लायर चीन है। सीडीसी के मुताबिक, अमेरिका ने 2019 में 60% बंदर चीन से ही लिए थे। 1978 तक भारत भी बंदर देता था। पर इनका इस्तेमाल सैन्य परीक्षणों में होने की बात सामने आने पर निर्यात रोक दिया गया था।