चैतन्य भारत न्यूज
मुहर्रम इस्लामी महीना है और इससे इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है। इस साल 29 अगस्त से मुहर्रम की शुरूआत हो रही है। कहा जाता है मुहर्रम महीने की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, जिसके चलते इस दिन को रोज-ए-आशुरा भी कहते हैं। मुहर्रम का यह सबसे अहम दिन माना गया है। इस दिन जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद किया जाता है। तो आइए जानते हैं कैसे हुई मुहर्रम की शुरुआत और इसका महत्व।
मुहर्रम की शुरुआत
मुहर्रम मातम मनाने और धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का दिन है। मुहर्रम के महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग शोक मनाते हैं और अपनी हर खुशी का त्याग कर देते हैं। कहा जाता है कि बादशाह यजीद ने अपनी सत्ता कायम करने के लिए हुसैन और उनके परिवार वालों पर जुल्म किया और उन्हें बेदर्दी से मौत के घाट उतार दिया। हुसैन का मकसद खुद को मिटाकर भी इस्लाम जिंदा रखना था। इसके बाद यह धर्म युद्ध इतिहास के पन्नों पर हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया।
कैसे मनाया जाता है मुहर्रम
मुहर्रम कोई त्योहार नहीं बल्कि इस्लाम धर्म के लोगों के लिए मातम मनाने का दिन है। शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हैं। हुसैन की शहादत को याद करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है और मातम मनाया जाता है। मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को मुस्लिम समुदाय के लोग रोजे रखते हैं और मस्जिदों-घरों में इबादत की जाती है। मान्यता है कि मुहर्रम के एक रोजे का सबाब 30 रोजों के बराबर मिलता है।
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