चैतन्य भारत न्यूज
छठ का त्योहार देश के कई इलाकों में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। ये त्योहार चार दिनों तक चलता है। छठ पर्व पर पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है। यह पर्व सूर्यदेव की उपासना का होता है। इस समय जल में दूध डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य दिया जाता है।
मान्यता है कि सूर्य की एक पत्नी का नाम प्रत्यूषा है और ये अर्घ्य उन्हीं को दिया जाता है। संध्या के समय अर्घ्य देने से कुछ विशेष तरह के लाभ होते हैं। छठ का पहला अर्घ्य आज दिया जाएगा। आइए जानते हैं कि डूबते सूर्य की उपासना का क्या पौराणिक महत्व है और इससे आप को कौन से वरदान प्राप्त हो सकते हैं।
छठ पूजा का पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यता के मुताबिक, लंका विजय और रावण दहन के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने यह उपवास करते हुए सूर्यदेव की आराधना की थी। सप्तमी के दिन सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। इसके अलावा छठ पर्व का प्रारंभ महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है।
मान्यता है कि सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य आराधना का प्रारंभ किया था। शूरवीर कर्ण भगवान सूर्य के अनन्य भक्त थे। वह रोजाना घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। कहा जाता है कि, सूर्य की कृपा से ही वह कुंती पुत्र कर्ण शूरवीर योद्धा और दानवीर बने थे। पौराणिक काल से चली आ रही छठ में अर्घ्य दान की यह परंपरा आज भी प्रचलित है। छठ पर्व को सूर्य षष्ठी और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। षष्ठी तिथि को मनाया जाने की वजह से इस त्यौहार को छठ पर्व कहते हैं।
सूर्य को अर्घ्य देने के नियम
- सूर्य षष्ठी के दिन सुबह के समय जल्दी उठकर स्नान करके हल्के लाल वस्त्र पहनें।
- इसके बाद एक तांबे की प्लेट में गुड़ और गेहूं रखकर अपने घर के मंदिर में रखें और व्रत का संकल्प लें।
- भगवान सूर्य नारायण के सूर्याष्टक का 3 या 5 बार पाठ करें।
- पूजा के दौरान भगवान सूर्यनारायण से अपने मान-सम्मान की प्राप्ति की प्रार्थना करें।
- अब लाल चंदन की माला से ॐ हिरण्यगर्भाय नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
- मान्यता है कि भगवान शिव और सूर्यनारायण की कृपा से उत्तम संतान का महावरदान मिलता है।
- तांबे की प्लेट और गुड़ का दान किसी जरूरतमंद व्यक्ति को सुबह के समय ही कर दें।