चैतन्य भारत न्यूज
दिवाली से एक दिन पहले चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इसे नरक चतुर्दशी के अलावा यम चतुर्दशी और रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस बार नरक चतुर्दशी 13 नवंबर को पड़ रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस नरक चतुर्दशी को मनाने के कारण क्या है? अगर नही तो आइए जानते हैं नरक चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है।
नरक चतुर्दशी कथा
पुराणिक कथाओं के मुताबिक, नरकासुर नामक राक्षस ने देवता और साधु संतों को परेशान किया हुआ था। राक्षस नरकासुर ने एक दिन देवताओं और संतों की 16 हजार स्त्रियों को बंधक बना लिया। तब सभी देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण के पास गए और नरकासुर के आतंक से मुक्ति का निवेदन किया तो भगवान कृष्ण ने नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप दिया।
तब भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को राक्षस नरकासुर का वध कर दिया और 16 हजार स्त्रियों उसकी कैद से आजाद कराया। तब से उन सभी को 16 हजार पट रानियां के नाम से जाने जाना लगा और कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के नाम से पूजा जाने लगा।
शुभ मुहूर्त
चतुर्दशी तिथि 13 नवंबर को शाम 5 बजकर 59 मिनट के बाद शुरू होगी और 14 नवंबर 2 बजकर 17 मिनट पर खत्म होगी. नरक चतुर्दशी की पूजा करने का शुभ मुहूर्त 14 नवंबर को सुबह 5 बजकर 23 मिनट से सुबह 6 बजकर 43 मिनट तक है. इस 1 घंटे 20 मिनट में आप नरक चतुर्दशी की पूजा कर सकते हैं.