चैतन्य भारत न्यूज
दिवाली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी और रूप चतुर्दशी आती है। इस साल नरक चतुर्दशी 13 नवंबर को पड़ रही है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में तेल लगाकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिल जाती है। आइए जानते हैं नरक चतुर्दशी का महत्व और पूजा-विधि।
नरक चतुर्दशी का महत्व
छोटी दिवाली को यम चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध महीने में आए हुए पितर इसी दिन चंद्रलोक वापस जाते हैं। पुराणों के मुताबिक, इस दिन अमावस्या होने के कारण चांद नहीं निकलता जिससे पितर भटक सकते हैं इसलिए उनकी सुविधा के लिए नरक चतुर्दशी के दिन एक बड़ा दीपक जलाया जाता है। यमराज और पितर देवता अमावस्या तिथि के स्वामी माने जाते हैं। इस दिन कृष्ण भगवान ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। जिस दिन नरकासुर का अंत हुआ, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी।
नरक चतुर्दशी पूजा-विधि
- सुबह उठकर स्नान के बाद तिल का तेल शरीर पर मलें और तुलसी के पौधे को सिर के ऊपर से चारों ओर तीन बार घुमाएं।
- ऐसी मान्यता है कि जो लोग इस दिन स्नान करते हैं उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है। साथ ही उनके सौंदर्य में भी वृद्धि होती है।
- इस दिन दक्षिण दिशा में हाथ जोड़कर यमराज को प्रणाम करें और उनसे अपनी रक्षा का वचन लें।
- इस दिन श्रीकृष्ण की भी पूजा करने की मान्यता है।
- नरक चतुर्दशी पर यम का दीपक जलाना चाहिए।