चैतन्य भारत न्यूज
नई दिल्ली. 16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में दोषियों की फांसी का वक्त अब करीब आ गया है। मौत को करीब आते देख एक दोषी अक्षय कुमार सिंह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। फांसी की सजा से बचने के लिए अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। इस याचिका में उसने महात्मा गांधी, मानवाधिकार और वेद पुराण सभी का जिक्र करते हुए तर्क दिए हैं।
बता दें सुप्रीम कोर्ट ने अन्य दोषी विनय, पवन और मुकेश की पुनर्विचार याचिकाओं को पहले ही खारिज कर दिया था। कोर्ट ने पिछले साल इनकी याचिका को खारिज करते हुए फांसी की सजा को बरकरार रखा था।अक्षय ने अपने वकील एपी सिंह के जरिए दाखिल पुनर्विचार याचिका में फांसी की सजा का विरोध करते हुए कहा है कि, ‘फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए बल्कि दोषी में क्रमवार सुधार किए जाने चाहिए क्योंकि फांसी देकर सिर्फ अपराधी को मारा जा सकता है अपराध को नहीं।’ साथ ही उसने अपनी याचिका में मृत्युदंड समाप्त किए जाने की भी बात कही है। इतना ही नहीं बल्कि दोषी ने याचिका में दिल्ली में प्रदूषण की खराब स्थिति का भी हवाला दिया।
Nirbhaya case: One of the convicts in the case, Akshay Kumar Singh, has filed review petition before the Supreme court. Akshay was sentenced to death by a trial court in the case. His sentence was upheld by Delhi High Court and the Supreme Court.
— ANI (@ANI) December 10, 2019
जान बचाने के लिए दिए ये तर्क
दिल्ली गैस चैम्बर बन चुकी
दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है। दिल्ली गैस चैम्बर बन चुकी है। यहां का पानी जहरीला हो चुका है। प्रदूषित हवा और पानी के चलते पहले ही लोगों की उम्र कम हो रही है, तो फिर फांसी की सजा की क्या जरूरत है।
धार्मिक ग्रंथों का दिया हवाला
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक सतयुग में लोग हजारों साल तक जीवित रहते थे। त्रेता युग में भी एक व्यक्ति हजार वर्ष तक जीता था लेकिन कलयुग में आदमी की उम्र 50-60 वर्ष तक सीमित रह गई है। फांसी की सजा देने की जरूरत नहीं है।
महात्मा गांधी आएं याद
जब हम अपने आसपास देखते हैं तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि जब एक व्यक्ति जीवन की कड़वी सच्चाई का सामना करता है और विपरीत परिस्थिति से गुजरता है तो वह किसी जिंदा लाश की तरह ही होता है। गांधी जी हमेशा कहते थे कि कोई भी फैसला लेने से पहले सबसे गरीब व्यक्ति के बारे में सोचें। यह सोचें कि आखिर आपका फैसला कैसे उस व्यक्ति की मदद करेगा। आप ऐसा विचार करेंगे तो आपके भ्रम दूर हो जाएंगे।
फांसी अपराधी को मारती है अपराध को नहीं
शासन को सिर्फ यह साबित करने के लिए लोगों की मौत की सजा पर अमल नहीं करना चाहिए कि वह आतंक या महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हमला कर रहा है। उसे बदलाव के बारे में सुनियोजित तरीके से सुधार के लिए काम करना चाहिए। फांसी की सजा पर अमल सिर्फ अपराधी को मारता है, अपराध को नहीं।’
फांसी की सजा खत्म कर देनी चाहिए
फांसी की सजा अब खत्म कर देनी चाहिए। इंग्लैंड ने 1956 में इसे खत्म कर दिया था। अर्जेंटीना, ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर, मैक्सिको पेरू और पनामा में भी यह खत्म हो चुकी है। भारत को भी अब इसे खत्म कर देना चाहिए।
फांसी मानवाधिकारों का उल्लंघन
फांसी मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इससे न सिर्फ जीने के हक का उल्लंघन है, बल्कि अहिंसा के सिद्धांत के भी उलट है। कहा जाता है कि सख्त सजा से लोग अपराध करने से डरेंगे, लेकिन दुनियाभर के शोध में ऐसे प्रमाण कहीं नहीं मिले।
मेडिकल छात्रा के साथ हुआ था सामूहिक दुष्कर्म
बता दें दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को चलती बस में पैरामेडिकल की छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। इस घटना में छात्रा को कई गंभीर चोटें आईं थीं। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थीं। इस मामले में निचली अदालत, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने चार दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी। इनमें से एक दोषी की जेल में ही मौत हो गई है, जबकि एक नाबालिग दोषी सजा काटकर जेल से बाहर आ चुका है। बचे चार दोषी अक्षय कुमार, मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता को अब फांसी दी जानी है। कहा जा रहा है कि सभी दोषियों को 16 दिसंबर को सभी को फांसी दी जा सकती है। हालांकि, इसे लेकर अभी पुष्टि नहीं हुई है।