चैतन्य भारत न्यूज
हिंदू धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को डोल ग्यारस मनाई जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हुए करवट लेते हैं इसलिए इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसके अलावा भी इसे ‘पद्मा एकादशी’, ‘वामन एकदशी’ और ‘जलझूलनी एकादशी’ के नाम से जाना जाता है। इस साल परिवर्तिनी एकादशी 29 अगस्त 2020 को है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं डोल ग्यारस का महत्व और पूजा-विधि।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा
त्रेता युग की बात है। बलि नाम का एक दैत्य था। वह दैत्यों का राजा था। भगवान विष्णु का परम भक्त था। विष्णु जी को अपना आराध्य मान उनका पूजन किया करता था। साथ ही ब्राह्मणों का भी आदर सत्कार किया करता था। उन्हें कभी खाली हाथ नहीं लौटने देता था। बलि का इंद्रदेव से बैर था। उसने अपनी शक्तियों से सभी देवी-देवताओं सहित इंद्र को जीत लिया था। तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी। दैत्य के शासन का विस्तार देखकर सभी देवता चिंतित हो गए कि पृथ्वी पर दैत्यों का शासन स्थापित हो जाएगा। इसलिए सभी देवी-देवता भगवान विष्णु की शरण में गए। उनकी स्तुति कर उनसे इस समस्या का समाधान मांगा।
भगवान विष्णु ने उनको आश्वासन दिया कि वह संपूर्ण विश्व पर दैत्यों का राज नहीं होने देंगे। क्योंकि इससे पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जाएगा और चारों ओर हिंसा फैल जाएगी। उन्होंने दैत्य राजा बलि से तीनों लोक मुक्त कराने के लिए वामन अवतार लिया। यह भगवान विष्णु का पांचवा अवतार था।
वामन अवतार लेकर भगवान विष्णु राजा बलि के महल गए। वहां जाकर उन्होंने राजा बलि से संकल्प लेने को कहा कि वह वामन देव को तीन पग भूमि दान करेंगे। वामन की बातों से दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने यह समझ लिया कि यह भगवान विष्णु हैं और यह राजा बलि से तीनो लोक लेने आए हैं। गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को सावधान किया। लेकिन राजा बलि ने कहा यह संकल्प ले चुके हैं और वह विष्णु जी को अपना आराध्य मानते हैं तो उन्हें मना कैसे कर सकते हैं। इस पर वामन देव ने दो पगों में ही समस्त संसार और लोकों को नाप दिया। इसके बाद विष्णु जी ने वामन देव से पूछा कि अब तीसरा पग कहां रखें। इसके जवाब में बलि महाराज ने अपना सिर भगवान विष्णु के कदमों में रख दिया और कहा कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रखें। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने तीनों लोगों को दैत्य शासन से मुक्त कर दिया। एकादशी के दिन व्रत कर इस कथा को पढ़ने-सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।