चैतन्य भारत न्यूज
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को भाद्रपद अमावस्या कहते हैं। इस अमावस्या को पोलाला अमावस्या, कुशोत्पाटिनी अमावस्या, कुशाग्रहिणी अमावस्या और पिठौरी अमावस्या के नाम से भी जाना है। इस वर्ष यह अमावस्या 19 अगस्त दिन को पड़ रही है। मान्यता है कि इस दिन पितरों को प्रसन्न करने से जीवन में सुख शांति और समृद्धि आती है। आइए जानते हैं भाद्रपद अमावस्या का महत्व और पूजा-विधि।
भाद्रपद अमावस्या का महत्व
अमावस्या तिथि के देवता पितृदेव होते हैं, उनकी प्रसन्नता के लिए अमावस्या पर पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है। पीपल के वृक्ष पर कच्चे दूध में काला तिल और गंगाजल मिलाकर पितरों की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन गंगा स्नान, पूजा पाठ, दान और पितरों का तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। पितरों की शांति के अलावा इस दिन महिलाएं अपने बेटे की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और पुत्र प्राप्ति के लिए पूजा-अर्चना करती हैं। यह आमावस्या भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है।
भाद्रपद अमावस्या की पूजा-विधि
मान्यता है कि भाद्रपद अमावस्या पर महिलाओं को भगवान भोलेनाथ की पत्नी पार्वती माता की पूजा जरूर करनी चाहिए। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, माता पार्वती ने भगवान इंद्र की पत्नी को पिठौरा अमावस्या की कथा सुनाई थी। पूजा के दौरान आटे से 64 देवियों की छोटी-छोटी प्रतिमा अथवा पिंड बनांए और इन्हें नए वस्त्र पहनाएं। पूजा के समय देवी को सुहाग के सभी समान जैसे नई चूड़ी, साड़ी, सिंदूर आदि चढ़ाया जाता है। विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।