चैतन्य भारत न्यूज
आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी कहा जाता है। कुछ स्थानों पर इसे डोकरा नवमी भी कहा जाता है। इस नवमी तिथि का श्राद्ध पक्ष में बहुत ही महत्त्व है। ऐसी मान्यता है कि मातृ नवमी का श्राद्ध कर्म करने से महिलाओं की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है। आइए जानते हैं मातृ नवमी का महत्व और पूजा विधि।
मातृ नवमी का महत्व
यह तिथि माता और परिवार की विवाहित महिलाओं के श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। नवमी तिथि का श्राद्ध मूल रूप से माता के निमित्त किया जाता है। शास्त्रानुसार नवमी का श्राद्ध करने पर श्राद्धकर्ता को धन, संपत्ति व ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा सौभाग्य सदा बना रहता है। इस दिन पुत्र वधुओं को व्रत रखना चाहिए। कहा जाता है कि मातृ नवमी का श्राद्ध करने वाले की हर इच्छा पूरी हो जाती है।
मातृ नवमी की पूजा-विधि
- घर के काम से निपटकर दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछाएं।
- नवमी के दिन पांच ब्राह्मणों और एक ब्राह्मणी को भोजन करवाना चाहिए। अपने पितरों के समक्ष तुलसी पत्र समर्पित करना चाहिए।
- श्राद्धकर्ता को कुशासन पर बैठकर भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ करना चाहिए।
- भोजन के दौरान ब्राह्मणों को लौकी की खीर, पालक, मूंगदाल, पूड़ी, हरे फल, लौंग-इलायची तथा मिश्री अर्पित करें।
- ब्राह्मण के भोजन के बाद पितरों से जाने अनजाने हुई भूल की क्षमा मांगे और उनका धन्यवाद करें।