चैतन्य भारत न्यूज
हिंदू धर्म में पितृपक्ष यानी श्राद्ध पक्ष का बहुत महत्व है। इन दिनों पितरों को याद किया जाता है और उनसे आशीर्वाद लिया जाता है। श्राद्ध भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में किए जाने का प्रावधान है। इस साल श्राद्ध पूर्णिमा 02 सितंबर को पड़ रही है। लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि आखिर श्राद्ध की शुरुआत हुई कैसे? और किसने की इसकी शुरुआत। आज हम आपको बताएंगे कि सबसे पहले श्राद्ध की शुरुआत किसने की।
पुराणों के मुताबिक, महाभारत काल में भीष्म पितामाह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के संबंध में कई बाते बताई हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि श्राद्ध की परंपरा कैसे शुरू हुई और धीरे-धीरे जनमानस तक कैसे यह परंपरा शुरू हुई। महाभारत के अनुसार, सबसे पहले महातप्सवी अत्रि ने महर्षि निमि को श्राद्ध के बारे में उपदेश दिया था। इसके बाद महर्षि निमि ने श्राद्ध करना शुरू कर दिया।
महर्षि को देखकर अन्य श्रृषि मुनियों भी पितरों को अन्न देने लगे। लगातार श्राद्ध का भोजन करते-करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए। लगातार श्राद्ध को भोजन पाने से देवताओं पितरों को अजीर्ण रोग हो गया जिससे वे काफी परेशान हो गए। इस परेशानी से मुक्ति पाने के लिए वे ब्रह्माजी के पास गए और अपने कष्ट के बारे में बताया। देवताओं और पितरों की बातें सुनकर उन्होंने बताया कि अग्निदेव आपका कल्याण करेंगे।
इस पर अग्निदेव ने देवातओं और पितरों को कहा कि अब से श्राद्ध में हम सभी साथ में भोजन किया करेंगे। मेरे पास रहने से आपका अजीर्ण भी दूर हो जाएगा। यह सुनकर सब प्रसन्न हो गए। जिसके बाद से ही सबसे पहले श्राद्ध का भोजन अग्निदेव को दिया जाता है, इसके बाद देवताओं और पितरों को दिया जाता है।