चैतन्य भारत न्यूज
हिंदू धर्म के प्रमुख तीज त्योहार में से एक राधाष्टमी का काफी महत्व है। दरअसल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बरसाने में राधा जी का जन्म हुआ था। इसलिए इसे राधाष्टमी के नाम से जाना जाता है। यह कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद मनाया जाता है। इस बार राधाष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी। आइए जानते हैं राधाष्टमी का महत्व और इसकी पूजा-विधि।
राधाष्टमी का महत्व
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है और उन्हें जीवन में कभी दुर्भाग्य का सामना नहीं करना पड़ता। साथ ही उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है और पति व संतान की आयु लंबी होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि इसका व्रत रखने वाली महिलाओं के घर में धन की कभी कमी नहीं होती।
राधाष्टमी व्रत की पूजा-विधि
- इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर सूर्यदेवता को जल अर्पित करें।
- इसके बाद मंडप के नीचे मंडल बनाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें।
- अब इस पात्र पर वस्त्रों से सुसज्जित राधा जी की मूर्ति स्थापित करें।
- इसके बाद राधाजी की 16 उपचार से पूजा करें।
- राधा जी की पूजा मध्याह्न के समय की जाती है।
- पूजन के बाद उपवास करें और एक समय भोजन करें।
- इस दिन श्रद्धानुसार सुहागिन स्त्रियों और ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।