चैतन्य भारत न्यूज
आज के दौर में इलैक्ट्रोनिक डिवाइस हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं। फिर चाहे वे पेरेंट्स हों या बच्चे हर कोई मोबाइल, कम्प्यूटर, लैपटॉप आदि इस्तेमाल करता है। बच्चों को व्यस्त रखने के लिए माता-पिता अक्सर उनके हाथ में फोन थमा देते हैं या फिर उन्हें टीवी के सामने बैठा देते हैं। एक शोध के मुताबिक, पिछले चार सालों में बच्चों के स्क्रीन पर गुजारे जाने वाले समय में दोगुना इजाफा हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 8 से 12 साल के बच्चे रोजाना आमतौर पर 4 घंटे 44 मिनट ऑन स्क्रीन रहते हैं। जबकि टीएनजर्स यानी 13 से 18 साल तक के बच्चे औसतन सात घंटे 22 मिनट स्क्रीन पर आंखे गड़ाए गुजारते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि, 11 साल की उम्र तक 53 प्रतिशत बच्चों का अपना मोबाइल होता है, वहीं 12 साल की उम्र में यह आंकड़ा 69 प्रतिशत को छू जाता। कॉमन सेंस मीडिया की ओर से यह सर्वे रिपोर्ट जारी की गई है जो कि अमेरिकी बच्चों पर किए गए शोध का नतीजा है, लेकिन भारत की स्थिति भी इससे अलग नहीं है।
इलैक्ट्रोनिक डिवाइसेस को लेकर ऐसी हालत
खाना खाते समय टीवी और शाम की फुर्सत में बच्चें खेलने के बजाय मोबाइल से चिपक जाते हैं। इतना ही नहीं बल्कि जब माता-पिता के साथ किसी के घर जाते हैं या शॉपिंग पर गए, ट्रैवलिंग के दौरान, डॉक्टर के वोटिंग एरिया से लेकर हर जगह बच्चें का मोबाइल पर नजर गड़ाए दिखना आम हो गया है। ऐसे में स्क्रीन पर गुजरने वाले बच्चों के समय पर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने चिंता जताई है। डब्ल्यूएचओ ने साफ कहा कि, एक साल की उम्र तक बच्चों को पल भर के लिए भी स्क्रीन के सामने नहीं आने दें। जबकि एक साल से दो साल की उम्र तक कुछ मिनटों के लिए बच्चे टीवी या मोबाइल देख सकते हैं। वहीं तीन से चार साल तक के बच्चे एक घंटे तक टीवी देख सकते हैं।
स्क्रीन टाइम पर लगाए लगाम
रिपोर्ट में कहा गया कि, पांच साल से कम उम्र के बच्चे स्क्रीन पर अधिक समय गुजारते हैं तो उनके एक्टिविटी लेवल कम हो जाता है व कई रोग की आशंका होती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, स्क्रीन टाइम के अधिक होने से बच्चों में एंजाइटी (बार-बार घबराए दिल) ,एडीएचडी (ध्यान कमी) केंद्रित करने में समस्या आदि देखी जा सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि, घर में टीवी देखने का समय सुनिश्चित हो, खाने के समय टीवी बिलकुल नहीं चलाएं। साथ ही बच्चों को इसके नुकसान के बारे में बताएं।