चैतन्य भारत न्यूज
कान्हा की नगरी मथुरा के विश्व प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर के ज्योतिषाचार्य अजय तैंलंग ने रविवार को समाचार एजेंसी यूनिवार्ता को बताया कि सामान्यतय: परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के बाद जब उसका अंतिम संस्कार भलीभांति नही किया जाता है अथवा जीवित अवस्था में उसकी कोई इच्छा अधूरी रह जाती है तो उसकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के बीच भटकती रहती है तथा मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है।
पितृ दोष के लक्षण
यह कष्ट व्यक्ति की जन्म कुंडली में भी झलकता है। यह कष्ट शारीरिक से ज्यादा मानसिक होता है। इन मानसिक कष्टों में विवाह में अड़चन, वैवाहिक जीवन में कलह, परिश्रम के बावजूद परीक्षा में असफलता, नौकरी का लगना और छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मौत, मंद बुद्धि के बच्चे का जन्म होना, अत्याधिक क्रोध होना आदि प्रमुख हैं। इनमें से किसी के होने पर व्यक्ति के जीवन से आनन्द का लोप हो जाता है।
पितृ दोष दूर करने के लिए हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि मृत्यु के बाद पुत्र द्वारा किया गया श्राद्ध कर्म मृतक की वैतरणी को पार कर देता है। गुरूवार की शाम को पीपल की जड़ में जल देकर उसकी सात परिक्रमा करने, सूर्य की आराधना या गाय को गुड़ और कुत्ते को भोजन खिलाने से भी पितृ दोष में कमी आती है।
पितृ पक्ष में श्रीमदभागवत कथा सुनने से मिलती है पितृ दोष से मुक्ति
उन्होंने बताया कि वास्तव में श्रीमदभागवत कथा का श्रवण विशेषकर पितृ पक्ष में श्रवण ही पितृ दोष से मुक्ति दिला सकता है इसलिए पितृ पक्ष में इसका श्रवण और पाठन पितरों को मोक्ष दिलाने का अटूट साधन है। संतों और वेदाचार्यों का मत है कि परिवार की सुख समृद्धि के लिए और पितृ दोष से मुक्ति पाने का सवोर्त्तम उपाय पितृ पक्ष में श्रीमदभागवत का श्रवण,पठन या पाठन माना गया है।