चैतन्य भारत न्यूज
जून माह की शुरुआत होते ही तीज-त्योहार आने लगे हैं। इस महीने की 3 तारीख यानी सोमवार को छह पर्वों का शुभ संयोग बन रहा है। बता दें सोमवार के दिन महीने की पहली अमावस्या यानी सोमवती अमावस्या हैं। इसके अलावा इस दिन शनि जयंती, रोहिणी व्रत, वट सावित्री व्रत, बड़मावस और भावुका अमावस्या का पर्व भी मनाया जाएगा। इस खास दिन जप, तप, व्रत और प्रभु की साधना करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं इन त्योहार के बारे में-
सोमवती अमावस्या
सोमवार को आने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। इस बार यह अमावस्या 3 जून को है। मान्यता है कि अमावस्या पर विधि-विधान से पूजन करने से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं और सदैव उनकी कृपा बरसती है। इस तिथि पर मां लक्ष्मी की आराधना भी सुख-समृद्धि दिलाने वाली होती है।
शनि जयंती
भगवान शनि को न्याय का देवता भी कहा जाता है। व्यक्ति के कर्मों के अनुसार शनि देव फल देते हैं। हर वर्ष शनिदेव का जन्मोत्सव हिंदू पंचांग के ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। शनि जयंती और सोमवती अमावस्या इस बार साथ में हैं और ऐसा दुर्लभ संयोग 149 साल बाद आया है। इस दिन शनि देव की पूजा-अर्चना करने का और उनके ध्यान करने का विशेष महत्व होता है। जिन भी लोगों की कुंडली में महादशा, अंतर्दशा, साढ़ेसाती और या फिर ढैय्या चल रही है उन्हें इस दिन शनिदेव की पूजा करने से मुक्ति मिल सकती है।
वट सावित्री व्रत
वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है। यह व्रत अखंड सुहाग रहने की कामना के लिए किया जाता है। इस दिन सुहागनें पवित्र बरगद का पेड़ और सावित्री-सत्यवान की पूजा-पाठ करती हैं। साथ ही कुछ महिलाएं इस दिन यमराज की भी पूजा करती हैं। बरगद के पेड़ की पूजा करने के दौरान सुहागन महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम एवं पति व्रत धर्म का स्मरण करती हैं। महिलाओं के लिए यह व्रत पापहारक, दुखप्रणाशक, सौभाग्यवर्धक और धन-धान्य प्रदान करने वाला होता है।
बड़मावस
वट वृक्ष को पृथ्वी पर सबसे ज्यादा शक्तिशाली वृक्ष माना गया है। मान्यता है कि सबसे पहले बड़मावस का व्रत देवी सावित्री ने किया था। इस व्रत से मिले आशीर्वाद से ही उनके पति के प्राण बच गए थे। वट वृक्ष से बहुत-सी शाखाएं नीचे की ओर लटकी हैं और इन शाखाओं को देवी सावित्री का रूप माना जाता है।
दर्श भावुका अमावस्या
कहते हैं कि किसी भावुक व्यक्ति पर अमावस्या का ज्यादा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में चंद्रदेव की कृपा पाने के लिए इस व्रत को किया जाता है। इस व्रत को नए चंद्रमा के दर्शन करने के बाद तोड़ते हैं।
रोहिणी व्रत
आकाश मंडल में कुल 27 नक्षत्र मौजूद हैं। इनमें से चौथा रोहिणी नक्षत्र है। रोहिणी का स्वामी शुक्र और नक्षत्र स्वामी चंद्रमा है। रोहिणी का जैन समुदाय में महत्व होता है। इस दिन महिलाएं अपने परिवार की खुशहाली और पत्नी की लंबी उम्र की कामना के लिए व्रत करती हैं। इस व्रत को 5 साल तक 5 महीने किया जाता है। इस व्रत को करने वाले जातक वासुपूज्य देव की पूजा-अर्चना करते हैं।