चैतन्य भारत न्यूज
5 सितंबर का दिन पूरे देश में ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता हैं। यह दिन शिक्षक के सम्मान और समाज में उनकी महत्ता को दर्शाता हैं। बता दें 5 सितंबर को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती होती है। वो शिक्षक भी थे, उन्हीं की याद में ये दिन सेलिब्रेट किया जाता है।
कहा जाता है कि राधाकृष्णन कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे। एक बार उनके कुछ विद्यार्थियों ने उनसे कहा था कि वो लोग उनका जन्मदिन मनाना चाहते हैं। इस पर उन्होंने कि, अलग से जन्मदिन मनाने की जगह अगर इस दिन को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाए जाए तो मुझे ज्यादा खुशी होगी। तभी से इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
बात दें राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद् और महान दार्शनिक थे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन मिला था। उन्हें साल 1954 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। इस शिक्षक दिवस पर आइए जानते हैं उन महान शिक्षकों के बारे में जिन्होंने शिक्षा के लिए बड़े कदम उठाए।
रवींद्र नाथ टैगोर
गुरु वींद्रनाथ टैगोर को उनके शिक्षण के अपरंपरागत तरीकों के कारण भारत में सबसे महान शिक्षकों में से एक माना जाता है। टैगोर शिक्षा में विश्वास करते थे जो चाहरदीवारी से परे था, इसलिए उन्होंने पेड़ों के नीचे सीखा और सिखाया। टैगोर शिक्षाविदों तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि संगीत, कला और सौंदर्यशास्त्र भी शामिल थे। बता दें उन्होंने अपनी नोबेल पुरस्कार राशि को शिक्षा में निवेश किया जो अब एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
भारत का मिसाइल मैन कहें जाने वाले डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को शिक्षक के रूप में याद किया जाता है। पढ़ाना उनका पैशन था और वो जहां भी गए, खासकर बच्चों को पढ़ाने का हर मौका पकड़ा। कलाम सर की क्लास नाम से उनका एक कार्यक्रम काफी प्रचलित था। डॉ. कलाम का मानना था कि शिक्षण एक बहुत ही शानदार पेशा है जो किसी व्यक्ति के चरित्र, कैलिबर और भविष्य को आकार देता है।
सावित्रीबाई फुले
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति के साथ मिलकर 1948 में पुणे के ब्राह्मण बहुल शहर में तमाम बाधाओं के बावजूद लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला था। ऐसे महान कदम के बावजूद उन्हें समाज से कोई सहयोग नहीं मिल रहा था। इसके बाद फुले ने लड़कियों के लिए कई स्कूल खोले। इसके अलावा उन्होंने विधवा पुनर्विवाह और दूसरों के बीच अस्पृश्यता जैसे मुद्दों से निपटने की दिशा में भी काम किया। अगर आज लड़कियां गर्व से स्कूलों में जाती हैं तो इसके पीछे सावित्रीबाई फुले जैसे शिक्षक का दृढ़ संकल्प शामिल है।