चैतन्य भारत न्यूज
हिंदू धर्म और हिंदू आस्था से अलग, राजनीतिक ‘हिंदुत्व’ की स्थापना करने वाले विनायक दामोदर सावरकर की आज जयंती है। उन्हें वीर सावरकर के नाम से भी जाना जाता है। सावरकर एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाट्यलेखक भी थे। सावरकर कभी भी आरएसएस और जनसंघ से नहीं जुड़े, लेकिन उनकी इन दोनों संगठनों और विचार से जुड़े के लोगों में काफी इज्जत है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं वीर सावरकर के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें…
- सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक में एक मराठी परिवार में हुआ था। अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा के दौरान ब्रिटिश राज से भारत को स्वतंत्रत कराने की जिज्ञासा सावरकर में जागृत हुई, उन्होंने भारत में स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा दिया, साथ ही अपने साथियों को भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया। फलस्वरूप उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया।
- साल 1910 में उन्हें नासिक के कलेक्टर की हत्या में संलिप्त होने के आरोप में लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद करीब 25 सालों तक सावरकर किसी न किसी रूप में अंग्रेजों के कैदी रहे। उन्हें 25-25 साल की दो अलग-अलग सजाएं सुनाई गईं और सजा काटने के लिए भारत से दूर अंडमान यानी ‘काला पानी’ भेज दिया गया। लेकिन यहां से सावरकर की दूसरी जिंदगी शुरू होती है। जेल में उनके काटे 9 साल 10 महीनों ने अंग्रेजों के प्रति सावरकर के विरोध को बढ़ाने के बजाय समाप्त कर दिया।
- दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा। सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857 एक सनसनीखेज पुस्तक रही जिसने ब्रिटिश शासन को हिला डाला था।
- इसके बाद साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के छठे दिन विनायक दामोदर सावरकर को गांधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के लिए मुंबई से गिरफ्तार कर लिया गया था। हांलाकि उन्हें फरवरी 1949 में बरी कर दिया गया था।
- कहा जाता है कि सावरकर पहले स्वतंत्रता सेनानी व राजनेता थे जिन्होंने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। 1905 के बंग-भंग के बाद उन्होंने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। सावरकर ने ही राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव सर्वप्रथम दिया था जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने माना।
- 1936 में महाराष्ट्र के एक बड़े फिल्मकार और इतिहासकार पीके अत्रे ने पहली बार सावरकर को ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ नाम से इतिहास में स्थापित किया। उस समय कांग्रेस ने सावरकर के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया था। बाल मोहन थिएटर कंपनी ने ‘ स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ नाटक का मंचन किया था जिसके बाद उन्हें ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ कहा जाने लगा।
- सावरकर ने 1966 में मृत्युपर्यंत उपवास किया। जब तक जीवन समाप्त नहीं हुआ तब तक खाना-पीना नहीं लिया। 1 फरवरी 1966 से उन्होंने वो सारी चीजें लेनी बंद कर दीं, जो उन्हें जिंदा रख सकती थीं। इसमें जीवनरक्षक दवाइयां, खाना और पानी सभी कुछ शामिल था। 26 फरवरी तक वह उपवास करते रहे। वह स्वतंत्र भारत के इच्छा मृत्यु के सबसे बड़े उदाहरणों में शामिल थे। सावरकर की मृत्यु 82 वर्ष की उम्र में हुई।