चैतन्य भारत न्यूज
शिशु को जन्म देना स्त्री जीवन की पूर्णता का प्रतीक है। एक बच्चे को जन्म देकर, पाल-पोसकर बड़ा करने की वजह से स्त्री ईश्वर की अनुपम कृति कही जाती है। बच्चे के आने सेस्त्री की पूरी दुनिया ही बदल जाती है। एक मां होने के नाते स्त्री अपने बच्चे को वह सब कुछ देना चाहती है जो उसके लिए सर्वोत्तम है। मां का दूध इसमें सबसे पहले आता है।
स्तनपान का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे मां और बच्चे के बीच भावनात्मक लगाव तेजी से बढ़ता है। स्तनपान कराती स्त्री के चेहरे से संतुष्टि इसी वजह से झलकती है। स्तनपान के दौरान जब बच्चा मां की छाती से चिपकता है तो उसे सुरक्षा, भावना और स्नेह, सभी की मिली-जुली अनुभूति होती है। विज्ञान इस बात को साबित कर चुका है कि मां और बच्चे के बीच यह रिश्ता बच्चे के संपूर्ण विकास में मदद करता है। स्तनपान बच्चे को शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर स्वस्थ रखने में सहायक होता है। यह बच्चे और मां के बीच जीवनभर के लिए एक गहरे रिश्ते की नींव रखता है। यही वजह है कि दुग्ध ग्रंथियों से दूध तभी निकलता है जब मां बच्चे के लिए सोचती है। उसे दूध पिलाकर पोषण देने की भावना से भरी होती है।
स्तनपान के दौरान मां भी रखे इन बातों का ध्यान
स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए कुछ नियम सदियों से हमारे समाज में चले आ रहे हैं। ये आज भी प्रासंगिक हैं। इन्हें मेडिकल साइंस भी मान चुका है। इसमें स्तनपान कराने के दौरान बहुत खट्टा, ठंडा, बासी आदि न खाने, शरीर की सफाई का ध्यान रखने आदि की सलाह दी जाती है। शिशु शुरुआती छह महीनों में पूरा पोषण मां के दूध से ही पाता है। जो खान-पान, आचार-विचार मां का होता है उसका असर बच्चे तक भी पहुंचता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर सुरक्षा कवच का कार्य करता है मां का दूध
स्तनपान के माध्यम से बच्चे को केवल पोषण ही नहीं मिलता बल्कि उसे बीमारियों से लड़ने का ठोस सुरक्षा कवच भी मिलता है। इसे मेडिकल साइंस में ‘कंगारू केयर’ के नाम से जाना जाता है। जिस तरह मादा कंगारू बच्चे के बड़ा होने तक अपने पेट के पास बनी थैली में रखकर उसकी देखभाल करती है। उसी तरह मां का दूध भी बच्चे को इसी तरह की सुरक्षा देता है। मां के दूध से बच्चे का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है यानी वह बीमारियों से लड़ सकता है। शोध से यह स्पष्ट हो चुका है कि स्तनपान करने वाले बच्चों को सर्दी-जुकाम और अन्य सामान्य संक्रमण बाकी बच्चों की तुलना में कम परेशान करते हैं। इससे बच्चों में उल्टी, दस्त, एग्जीमा,अस्थमा, कान में होने वाले संक्रमण, यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण, सांस संबंधी रोग, मोटापा, टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज, निमोनिया और अन्य कई बीमारियों के होने की आशंका काफी कम हो जाती है।